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प्रागैतिहासिक काल की जैन साध्वियाँ एवं विदुषी महिलाएं : ४७
ने हार कर उससे विवाह किया। श्रीपाल ने पुनः अपना रूप राजकुमार के समान परिवर्तित कर लिया।' त्रिलोक सुन्दरी
त्रिलोकसुन्दरी नामक सर्वगुण सम्पन्न सुन्दर राजकन्या से श्रीपाल ने विवाह किया था। शृंगारसुन्दरी
काष्ठ की पुतलियों द्वारा पूछे गये विचित्र प्रश्नों का सही उत्तर देने पर शृंगारसुन्दरी ने श्रीपाल के गले में वरमाला डाली और विवाह किया । जयसुन्दरी :
श्रीपाल राजा ने आठ चक्रों पर घूमती हुई राधा नाम की पुतली की आँख को अपने बाण से विद्ध दिया और जयसुन्दरी की प्रतिज्ञा पूरी होने पर उससे विवाह किया । तिलकसुन्दरी:
सर्प के डंसने से राजकुमारी तिलकसुन्दरी की मृत्यु हो गई। उसे श्मशान ले जाते हए राजा श्रीपाल ने देखा । श्रीपाल ने मंत्रादि से राजकुमारी के शरीर में व्याप्त सर्प के जहर को उतार दिया तथा जीवित होने पर उससे विवाह किया।५ श्रीपाल ने सिद्धचक्र की आराधना से अगाध सुख-सम्पत्ति प्राप्त की थी। ___ मयणासुन्दरी एवं श्रीपाल चरित्र में सिद्धचक्र की आराधना का महत्त्व बताया गया है। यह व्रत नौ दिन का होता है । इसमें पाँच दिन तक विभिन्न अनाजों का आयंबिल करते हैं तथा चार दिन केवल चावल ही एक समय लेते हैं । इसमें चक्रेश्वरी देवी की आराधना करने से जिस प्रकार श्रीपाल की रानियों का कष्ट दूर होता है उसी प्रकार अन्य श्रावक १. आ० विनयविजयजी, चित्रमय श्रीपालरास, संपा० तथा संशो० साराभाई,
मणिलाल, पृ० १४८ २. वही, पृ० १५५ ३. वही, पृ० १६६ ४. वही। ५. वही, पृ० १७०
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