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________________ ३६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं चन्द्रनखा का पुत्र था और वह वहाँ 'सूर्यहास खङ्ग' (एक विशेष प्रकार की साधना) की तपस्या कर रहा था। चन्द्रनखा के पुत्र की मृत्यु से क्रोधित होकर रावण राम-लक्ष्मण से युद्ध करने आया किन्तु वहाँ सीता के रूप पर मोहित होकर छलपूर्वक उठा ले गया ।' हरण करने के पश्चात् रावण ने सीता को अपनी ओर आकृष्ट करने का बहत प्रयास किया परन्तु सीता ने क्रोधित होकर उससे कहा, 'हे अधम पुरुष, तेरा यह कार्य नरकगमन तथा अपकीर्ति का कारण है। तू परस्त्रो-गमन को इच्छा से भारो पाप कर्म बाँधकर अवनति की ओर जा रहा है । सीता के इस नीति वाक्यों का रावण पर कोई असर नहीं हआ और उसने सीता को देवा नामक उद्यान में बन्दी सदृश रखा । अपने पति रावण को दुःखी देखकर उसकी पटरानी मन्दोदरी भी सीता को समझाने आई। सीता ने उससे कहा, "हे वनिते, तेरे यह वचन शास्त्रों के विरुद्ध हैं। पतिव्रता स्त्रियों के मुख से ऐसे वचन नहीं निकल सकते ।" मैं पतिव्रता नारी हूँ-किसी दूसरे पुरुष का विचार मन में भी नहीं ला सकती।"२ ____ अन्त में राम-रावण युद्ध में राम विजयी हुए और सोता को अयोध्या ले गये। वहाँ प्रजाजनों के मिथ्या दोषारोपण के कारण पुनः गर्भवतो सीता को वन में भेज दिया। सेनापति सीता को घोर अरण्य में रथ से उतार कर जब जाने लगा तब सीता ने कहा, "हे भद्र, राम को यह संदेश देना कि आपने मुझे लोक अपवाद के भय से अरण्य में भेजा जबकि ऐसी स्थिति में मेरे सतीत्व की परीक्षा लेना श्रेयस्कर था। यह मेरे भाग्य का दोष है। पर जिस प्रकार आपने मुझे एकदम त्याग दिया उस प्रकार किसी मिथ्यादृष्टि वाले पुरुष के कहने से जिन धर्म का त्याग मत करना। इतना सब होने पर भी सोता के मुख से राम के प्रतिकूल एक भी शब्द नहीं निकला। ___ वन में रहते हुए सीता ने दो युगल पुत्रों को जन्म दिया। बड़े होकर उन्होंने नारद द्वारा राम की कथा तथा अपनी माता के साथ हुए दुर्व्यवहार को सुना । फलस्वरूप सब विद्याओं में पारंगत दोनों कुमार क्रोधित १. रविषेणाचार्य, पद्मपुराण, भाग २, पर्व ४४, पु० २३७ २. वही, भाग २, पर्व ४६, पृ० २५७-२५८ ३. हेमचन्द्राचार्य-त्रिषष्टिशलाकापुरुष-पर्व ७, सर्ग ८, पृ० १६० ४. देखें-पद्मपुराण, विमलसूरि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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