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प्रागैतिहासिक काल की जैन साध्वियाँ एवं विदुषी महिलाएँ : ३५ बलदेव) की भार्या का नाम सीता था। राम अपने पिता दशरथ की आज्ञा से चौदह वर्ष के लिये जब वन में जाने लगे, तो सीता भी पति की अनुगामिनी बनी तथा देवर लक्ष्मण (वासुदेव) भी साथ में गये। अयोध्या से प्रयाण कर भयंकर वनों आदि को पार कर वे वेजयन्तपुर के समीपवर्ती मैदान में पहुंचे। वहाँ उनका आदर-सत्कार किया गया। एक समय राजा पृथ्वीधर के राज दरबार में दूत ने आकर यह सन्देश दिया कि राजा अतिवीर्य भरत से युद्ध की तैयारी कर रहा है। यह समाचार जानकर भ्रातृ-प्रेम से प्रेरित होकर राम और लक्ष्मण सीता सहित पृथ्वीधर के पुत्रों एवं उनकी सेनाओं को साथ लेकर राजा अतिवीर्य से युद्ध करने चल पड़े। नन्द्यावर्तपुरी (अतिवीर्य राजा की राजधानी) के समीप पहुँच कर अतिवीर्य की प्रबल सैन्य शक्ति देखकर सीता ने राम को सलाह देते हुए कहा, 'हे नाथ, राजा अतिवीर्य अत्यन्त बलवान, भारी सेना का अधिकारी एवं क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने वाला है। अतः इस कार्य को बहुत सावधानी के साथ मंत्रणा करके करना उपयुक्त होगा।" सीता के इस सुझाव को मानकर राम ने गम्भीर मंत्रणा कर निर्णय लिया। सैन्य पड़ाव के सन्निकट जिन मन्दिर की आर्यिकाओं के पास सीता को छोड़कर राम एवं लक्ष्मण ने मनोहर नर्तकी रूप धारण कर अतिवीर्य की राज्यसभा में प्रवेश किया। वहां पहुँचकर उन्होंने अतिमनोरम नृत्य किया। नृत्यरस में राजा अतिवीर्य को आकण्ठ डूबा जानकर राम-लक्ष्मण ने सहसा धावा बोलकर बन्दी बना लिया और उसे अपने शिविर में ले आये। लक्ष्मण जब अतिवीयं का वध करने चला तो सीता ने उसे रोका और कर्मों का फल तथा अहिंसा का महत्त्व बताते हुए कहा कि ऐसा करना धर्म-विरुद्ध है। ___ वहाँ से आगे चलने पर वंशधर पर्वत पर ध्यानस्थ मुनि को वन्दन कर तीनों ने पूजा की तथा राम-लक्ष्मण ने मधुर भाव से स्तवन गाये तथा भक्तिभाव से विभोर होकर सीता नृत्य करने लगी। वहां से भयंकर वन और अटवी को पार करते हुए वे लोग दण्डक वन पहुंचे। दण्डक वन के घने बाँस के जंगलों को साफ करते समय भूलवश लक्ष्मण की तलवार से 'शम्बूक' का शिर कट गया। 'शम्बूक' रावण को बहिन
१. रविषेणाचार्य, पद्मपुराण-भाग २, पर्व ३७, पृ० १६०, १६४ २. वही, पृ० १६५ ३. वही, पर्व ३९, पृ० १८२
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