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________________ जैनेतर परम्पराओं में अहिंसा "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ अमनुष्यवाले रोग में कच्चे मांस और कच्चे खून की।" जहाँ तक मांस-मछली के भक्षण का प्रश्न है इस सम्बन्ध में बुद्ध का कथन है "भिक्षुओ ! जान-बूझकर ( अपने ) उद्देश्य से बने मांस को नहीं खाना चाहिए। जो खाए उसे दुक्कट का दोष हो। भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ ( अपने लिए मारे को ) देखे, सुने, संदेह-युक्त-इन तीनों बातों से शुद्ध मछली और मांस ( के खाने ) की। अर्थात् भिक्षु यदि देखता है या सुनता है अथवा उसे आशंका होती है कि मांस या मछली जो उसको भेंट की गई है, वह उसी के निमित्त मारी और तैयार की गई है तो ऐसी हालत में वह उस मांस या मछली को नहीं खा सकता। यदि खायेगा तो दोष का भागी होगा। लेकिन, यदि वह भिक्षाटन के लिए जाता है और भिक्षास्वरूप, गृहस्थ उसे अपने लिए तैयार मांस या मछली में से कुछ दे देता है तो वैसी हालत में भिक्ष का मांस या मछली का लेना और खाना दोषपूर्ण नहीं समझा जायेगा। कारण, यदि वह इनकार करेगा दिये हुए मांस को लेने से तो गहस्थ को उसके लिए अन्यवस्तु की व्यवस्था करनी पड़ेगी, जिसकी वजह से वह परेशान होगा। इस तरह गृहस्थों के लिए भिक्षुओं को भिक्षा सेवन करने की । भिक्षुत्रो ! यदि विकाल से ग्रहण की गई हों, विकाल से पकाई और विकाल से खिलाई गई हों (और) भिक्षुप्रो ! उनका सेवन करे तो तीनों दुक्कटों का दोष हो। यदि भिक्षुओ। काल से लेकर विकाल से पका, विकाल से मिला उनका सेवन करे तो दो दुक्कटों का दोष हो । यदि भिक्षो! काल से लेकर काल से पका, विकाल से उनका सेवन करे (तो) एक दुक्कट का दोष हो । यदि भिक्षुत्रो! काल से ले काल से पका काल से मिला उनका सेवन करे तो दोष नहीं। विनय-पिटक, पृ० २१६. १. वही, पृ० २१८, वात आदि रोग के लिए। २. वही, पृ० २४५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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