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________________ ७० जैन धर्म में अहिंसा एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा को रोकने की दृष्टि से बुद्ध ने भिक्षुओं से कहा है-' "भिक्षुओ! ताल के पत्र की पादुका नहीं धारण करनी चाहिए । जो धारण करे उसे दुक्कट का दोष हो।" "भिक्षओ ! बाँस के पौधों की पादुका नहीं धारण करनी चाहिए। जो धारण करे उसे दुक्कट का दोष हो ।" क्योंकि पत्ते कट जाने पर पौधे सूख जाते हैं, जिसकी वजह से एकेन्द्रिय जीव की हिंसा होती है। चर्मनिषेध के सम्बन्ध में एक कथा प्रस्तुत की गई है, जिसमें एक भिक्ष एक उपासक से उसकी गाय के बछड़े को मरवाता है और बछड़े का चर्म लेकर अपने आश्रम को लौटता है। यह बात बुद्ध को मालूम होती है कि सिर्फ चर्म-लोभ के कारण ही भिक्षु ने प्राणी-हिंसा की है, तब वे भिक्षुओं को उपदेश देते हैं "भिक्षुओ! प्राण-हिंसा की प्रेरणा नहीं करनी चाहिए। जो प्रेरणा करे उसको धर्मानुसार (दंड) करना चाहिए। भिक्षुओ ! गाय का चाम नही धारण करना चाहिए। जो चर्म धारण करे उसे दुक्कट का दोष हो। भिक्षुओ ! कोई भी चर्म नहीं धारण करना चाहिए। जो धारण करे उसे दुक्कट दोष हो । २ किन्तु इन सभी निषेधों के अपवादस्वरूप बुद्ध ने विशेष अवस्थाओं, जैसे किसी अत्यन्त कष्टदायक रोग की अवस्था आदि में औषध-स्वरूप मांस या चर्बी या खुन के प्रयोग को क्षम्य अथवा दोषरहित बताया है। इसके अलावा अमनुष्यवाले रोग ( एक प्रकार का रोग ) में तो इन्होंने साफ कहा है१. विनय-पिटक, पृष्ठ २०७. २. वही, पृष्ठ २१०. ३. भिक्षुप्रो ! अनुमति देता हूँ चर्बी की दवाई को (जैसे कि) रीछ की चर्बी, मछली की चर्बी, सोंस की चर्बी, सुमर की चर्बी, गदहे की चर्बी, काल (पूर्वाल) में लेकर काल से पका काल से, तेल के साथ मिलाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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