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जैनेतर परम्पराओं में अहिंसा विष्णु के बड़े भयंकर रूप हैं और ये ही संसार के नित्य प्रलय के कारण हैं।"
चूंकि विष्णु सर्वव्यापक हैं, यज्ञ में इन्हीं का यजन होता है, इन्हीं का जप किया जाता है और हिंसा करने वाला इन्हीं की हिंसा भी करता है । अतः जो व्यक्ति परस्त्री, परधन एवं हिंसा से अपने को अलग रखता है उससे हमेशा ही विष्णु संतुष्ट रहते हैं । जो सभी प्राणियों को पुत्रवत् देखता है उससे शीघ्र ही श्री हरि यानी विष्णु प्रसन्न हो जाते हैं। अतः ब्राह्मण को चाहिए कि किसी का अहित न करे, साथ ही सबके हित की कामना करे क्योंकि सभी जीवों के प्रति मैत्रीभाव रखना ब्राह्मण का धर्म है ।२ १. हिंसा भार्या त्वधर्मस्य ततो जज्ञे तथानृतम् ।
कन्या च निकृतिस्ताभ्यां भयं नरकमेव च ॥३२॥ माया च वेदना चैव मिथुनं त्विदमेतयोः । तयोर्जज्ञेऽथ वै माया मृत्यु भूतापहारिणम् ॥३३॥ वेदना स्वसुतं चापि दु:खं यज्ञेऽथ रौरवात् ।। मृत्योाधिजराशोकतृष्णाक्रोधाश्च जज्ञिरे ॥३४।। दुःखोत्तराः स्मृताः ह्यते सर्वे चाधर्मलक्षणा: । नैषां पुत्रोऽस्ति वै भार्या ते सर्व ह्यूवरेतसः ॥३५॥ रौद्राण्येतानि रूपाणि विष्णोर्मुनिवरात्मज । नित्यप्रलयहेतुत्वं जगतोऽस्य प्रयान्ति वै ॥३६॥
विष्णुपुराण, प्रथम अंश, प्र० ७. २. यजन्यज्ञान्यजत्येनं जपत्येनं जपन्नप।। निधनन्नन्यान्हिनस्त्येनं सर्वभूतो यतो हरिः ॥१०॥ परदारपरद्रव्यपरहिंसासु यो रतिम् ।। न करोति पुमान्भूप तोष्यते तेन केशवः ।।१४।। यथात्मनि च पुत्रे च सर्वभूतेषु यस्तथा । हितकामो हरिस्तेन सर्वदा तोष्यते सुखम् ॥१७॥ सर्वभूतहितं कुर्यात्नाहितं कस्यचिद् द्विजः । मैत्री समस्तभूतेषु ब्राह्मणस्योत्तमं धनम् ॥२४॥
विष्णुपुराण, अंश-३, प्र. ८.
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