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________________ जैन धर्म में अहिंसा विष्णुपुराण-सूत्रों में हम लोगों ने देखा है कि यज्ञों में गाय या अन्य पशुओं की बलि धर्मोचित है। विष्णुपुराण के मैत्रेयी-पराशर वार्तालाप में उन अन्नों या औषधियों के नाम बताये गए हैं जो यज्ञ के काम में आते हैं-धान, यव, उड़द, गवेधु, वेणु, छोटे धान्य, तिल, कांगनी, कुलथी, श्यामाक, नीवार, वनतिल, मर्कट (मक्का)। ये सभी यज्ञानुष्ठान की सामग्रियाँ हैं, किन्तु इनमें किसी भी प्रकार का मांस या मछली का नाम नहीं दिया गया है।' इतना ही नहीं, इस पुराण में हिंसा का एक पारिवारिक रूप भी प्रस्तुत किया गया है जो इस प्रकार है : "अधर्म की स्त्री हिंसा थी। उससे अनत नामक पुत्र और निकृति नामक कन्या उत्पन्न हई। उन दोनों से भय और नरक नाम के पुत्र पैदा हए । जिनकी पत्नियां माया और वेदना नाम की कन्याएं बनीं। उनमें से माया ने समस्त प्राणियों का संहारकर्ता मृत्यु नामक पुत्र उत्पन्न किया और मृत्यु से व्याधि, जरा, शोक, तृष्णा और क्रोध की उत्पत्ति हुई। ये सब अर्धमरूप हैं और दु:खोत्तर नाम से प्रसिद्ध हैं ( क्योंकि इनके परिणामस्वरूप दुःख ही प्राप्त होता है )। इनकी न कोई स्त्री और न कोई सन्तान ही है । ये ऊर्ध्वरेता हैं । हे मुनिकुमार ! ये सब भगवान् १. व्रीहयश्च यवाश्चैव गोधमाश्चारणवस्तिला: । प्रियंगवो हयुदाराश्च कोर दूषाः सतीनकाः ॥२१॥ माषा मुद्गा मसूराश्च निष्पावा: सकुलत्थका: । पाढक्यश्चरणकाश्चैव शणा: सप्तदश स्मृताः ॥२२॥ इत्येता प्रोषधीनां तु ग्राम्यानां जातयो सुने । प्रोषध्यो यज्ञियाश्चैव ग्राम्यारण्याश्चतुर्दश ॥२३॥ व्रीहयस्सयवा माषा गोधूमाश्चाणवस्तिला। प्रियंगुसप्तमा ह्य ते प्रष्टमास्तु कुलत्थकाः ॥२४॥ श्यामाकास्त्वथ नीवारा: जर्तिला. सगवेधुकाः । तथा वेणुयवाः प्रोक्तास्तथा मर्कटका मुने ।।२५।। ग्राम्यारण्याः स्मृता ह्यता प्रोषध्यस्तु चतुर्दश । यज्ञनिष्पत्तये यज्ञस्तथासां हेतुरुत्तमः ॥२६॥ विष्णुपुराण. प्रथम अंश, म०६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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