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जैनेतर परम्परामों में अहिंसा रूप से ई० पूर्व द्वितीय शती से पहले हुई होगी। राधाकुमुद मुकर्जी के अनुसार तैत्तिरीय और मैत्रायणी संहिता तथा छान्दोग्योपनिषद् में मनु का उल्लेख नियम निर्धारित करने वाले के रूप में हुआ है। यहां तक कि यास्क जिनका समय ई० पूर्व सातवीं शती माना जाता है, ने निरुक्त में मन का उल्लेख किया है। इस तरह एक वैदिक ऋषि के रूप में मनु का समय अति प्राचीन समझा जाना चाहिए। उनके द्वारा रचित बहुत श्लोक भी काफी पुराने हैं पर मनुस्मृति या मानवधर्मशास्त्र के रूप में उनका संकलन बाद में हुआ है। चूकि मनुस्मृति का संबंध मानव-सूत्र-चरण ( वैदिक शाखा ) जो कृष्ण यजुर्वेद पर आधारित है,' से है, इस पर वैदिक विचारधारा का काफी प्रभाव है। इसमें वर्ण धर्म तथा आश्रम धर्म पर प्रकाश डाला गया है, साथ ही खाद्य-अखाद्य, कर्तव्य-अकर्तव्य का विस्तृत विवेचन किया गया है। खास तौर से मांसाहार जिसका संबंध हिंसा-अहिंसा के सिद्धान्त से है, का पर्ण स्पष्टीकरण इसमें मिलता है। ___ मांसाहार तथा हिंसा का अत्यन्त घनिष्ठ संबंध है। कोई भी व्यक्ति आहार के निमित्त मांस की उपलब्धि तब तक नहीं कर सकता, जब तक कि वह किसी जीव की हिंसा नहीं करता, क्योंकि मांसाहार करने वाले स्वाभाविक मृत्यु से मरे हुए प्राणी के मांस को ग्रहण करना न चाहते हैं और न करते भी हैं। मांसभक्षण का अर्थ ही है हिंसा। अतः अहिंसक के लिए मांसाहार का निषेध किया गया है। मनुस्मृति में यह बताया गया है कि मांस ग्रहण करना किस हद तक उचित है अथवा अनुचित । इसके पांचवें अध्याय में हिंसा-अहिंसा-संबंधी बृहद् विवेचन मिलता है। यहाँ पर इस संबंध में तीन पक्ष प्रस्तुत किए गए हैं : १. यह पक्ष पशु-पक्षियों के भक्ष्यअभक्ष्य मांस की चर्चा करता हुआ हिंसा का समर्थन करता है। २. इस पक्ष में हिंसा की मर्यादा यज्ञ तक साबित की गई है, यानी यज्ञ में पशुओं की हिंसा करना और उनके मांस का विधिपूर्वक भक्षण करना उचित है परन्तु साधारण मांस जो यज्ञ के अलावा
1. Hindu Civilization ( Radha Kumud Mookerji), p. 159.
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