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जैन धर्म में अहिंसा
पूर्ति हो जाती है । अर्थात् पत्नी न भी हो और ये सब गुण जिस व्यक्ति में हों तो उसे प्राणाग्निहोत्र यज्ञ करने में दोष नहीं लगता । ' इतना ही नहीं, आगे चलकर इसमें अहिंसा को यज्ञ का इष्ट बताया गया है अर्थात् अहिंसा व्रत की परिपूर्णता के लिए यज्ञादि किए जाते हैं । २ आरुणिकोपनिषद् में बार-बार कहा गया है कि ब्रह्मचर्य, अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य आदि व्रतों की प्रयत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए। और शाण्डिल्योपनिषद् ने तो अहिंसा की गिनती दश यमों में की है यानी अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, दया, आर्जव, क्षमा, धृति, मिताहार तथा शौच ये दश यम हैं ।
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इस प्रकार हम देखते हैं कि उपनिषदों के अनुसार अहिंसा मनुष्य के सदाचार का एक प्रधान अंग है तथा सांसारिक बन्धनों से मुक्ति पाने का एक बहुत बड़ा साधन भी है। इसी वजह से इसे यज्ञादि का इष्ट या उद्देश्य भी समझा गया है ।
स्मृति :
स्मृतियों में मनुस्मृति अभीष्ट है । यह वैदिक धर्म या ब्राह्मण परम्परा का पथ-प्रदर्शन करती है । इसमें प्रायः २६८५ श्लोक हैं । काणे तथा नीलकंठ शास्त्री ने माना है कि इसका संशोधन ई० पूर्व द्वितीय शती से ई० सन् द्वितीय शती तक के बीच में हुआ था । इसका मतलब होता है कि मनुस्मृति की रचना निश्चित
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१. स्मृतिर्दया क्षान्तिरहिंसा पत्नीसंजायाः । प्राणाग्निहोत्रोपनिषद्, खण्ड ४. २. प्राणाग्निहोत्रोपनिषद्, खण्ड ४.
३. ब्रह्मचर्यमहिंसा चापरिग्रहं च सत्यं च यत्नेन हे रक्षतो हे रक्षतो हे रक्षत इति ॥ ३ ॥ श्ररुरिणकोपनिषद् |
४. तत्राहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्य दयार्जवक्षमावृतिमिताहारशीचानि चेति यमा दश ॥१॥ शाण्डिल्योपनिषद् |
5. History of Dharmaśastra (Kane), Vol. I, pp. 133.53; History of Philosophy : Eastern and Western, Vol. 1, P. 107.
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