SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म में महिंसा अन्य साधनों से उपलब्ध हो, को ग्रहण करने का निषेध किया गया है। ३. यज्ञ में पशु-वध एवं मांसाहार को दोषपूर्ण बताते हुए अहिंसा का समर्थन किया गया है। इन पक्षों को स्पष्टता नीचे के शब्दों में दृष्टिगोचर होती है : पहला पक्ष-कच्चा मांस खानेवाले गिद्ध इत्यादि तथा घर में रहने वाले कबूतर आदि पक्षी अभक्ष्य हैं। जिनके नाम बताये नहीं गये हों ऐसे खुरवाले, घोड़े, गधे आदि के मांस खाने योग्य नहीं होते । टिटहरी पक्षी का मांस अभक्ष्य होता है। लेकिन पाठीन और रोहित मछलियां हव्य-काव्य के लिए निर्देशित हैं; इनके अलावा राजीव, सिंहतुण्ड और चोंयटेवाली सभी मछलियां भी खाने योग्य हैं । ब्राह्मण यज्ञ के लिए तथा स्वजनों के रक्षार्थ हिंसा कर सकता है, क्योंकि अगस्त्य ऋष्टि ने ऐसा किया था। ऋषियों तथा ब्राह्मण-क्षत्रियों के द्वारा किए गए पहले के सभी यज्ञों में मांस के उपयोग हुए हैं। मंत्रों के द्वारा पवित्र मांस खाया जा सकता है; यज्ञविधि से मांस खाना तथा प्राण-संकट आने पर मांस का खाना निषिद्ध नहीं है। प्राण के लिये ये ब्रह्मा के द्वारा कल्पित अन्न हैं, स्थावर और जंगम सभी प्राण के भोजन है-जैसे चरों का अन्न अचर, डाढ़वालों के बिना डाढ़वाले और वीरों के अन्न कायर हैं। इस तरह जो जीव खाने वाला है वह प्रतिदिन प्राणियों को खाकर भी दोषी नहीं होता। कारण, ब्रह्मा ने ही खादक और खाद्य दोनों को ही जन्म दिया है।' १. क्रव्यादाञ्छकुनान्सस्तिथा ग्रामनिवासिनः । अनिदिष्टांश्चैकशफांष्टिट्टिभं विवर्जयेत् ॥११॥ कलविकं प्लवं हंसं चक्रावहं ग्रामकुक्कुटम् । सारसं रज्जुवालं च दात्यूहं शुकसारिके ।।१२।। प्रतुदाञ्जलपादांश्च कोयष्टिनखविष्किरान् । निमज्जतश्च मत्स्यादान् सौनं वल्लूरमेव च ॥१३॥ पाठीनरोहितावाद्यो नियुक्ती हव्यकव्ययोः । राजीवान्सिहतुण्डांश्च सशल्काश्चैव सर्वशः ॥१६॥ यज्ञार्थ ब्राह्मणैर्वध्या: प्रशस्ता मृगपक्षिणः । भृत्यानां चैव वृत्त्यर्थमगस्त्यो ह्याचरत्वरा ॥२२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy