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________________ उपसंहार २७३ अथवा उसे किसी भी प्रकार का कष्ट पहुंचाना हिंसा कही जाती है । हिंसा मन, वाणी तथा शरीर से की जाती है; इन्हें योग कहा गया है । यह की जाती है, कारवाई जाती है तथा अनुमोदित होती है । करना, करवाना और अनुमोदन करना, इसके तीन करण हैं। तीन योग के आधार पर इसके दो स्वरूप देखे जाते हैं-भाव तथा द्रव्य, जिनके आधार पर हिंसा के चार भंग बनते हैं - भावहिंसा द्रव्यहिंसा, भावहिंसा द्रव्यहिंसा नहीं, भावहिंसा नहीं - द्रव्यहिंसा, न भावहिंसा न द्रव्यहिंसा । प्रवचनसार के व्याख्याकार ने भाव तथा द्रव्य रूपों को ही अन्तरंग तथा बहिरंग नाम दिया है। प्राण का घात करनेवाली प्रवृत्ति अन्तरंग हिंसा है और बाह्य शरीर का घात करनेवाली बाह्य हिंसा । हिंसा की उत्पत्ति क्रोध, मान, माया और लोभ चार कषायों के कारण होती है । इन सबों की वजह से हिंसा के तीन भेद देखे जाते है - संरंभ, समारंभ तथा आरंभ। इन्हें दूसरे शब्दों में हिंसा का विचार, हिंसा के उपक्रम और हिंसा के क्रियान्वितरूप कह सकते हैं । चार कषाय तथा तीन - संरंभ समारंभ और आरंभ के संयोग से हिंसा के बारह भेद हो जाते हैं । फिर तीन योग और तीन करण के योग से हिंसा के १०८ भेद हो जाते हैं । प्रश्नव्याकरण सूत्र में हिंसा के प्राणवध, उन्मूलना, अविश्रम्भ, अकृत्य, घातना, मारण, हनन आदि तीस नाम तथा पाप, चण्ड, रौद्र, क्षुद्र आदि २२ रूप बताये गये हैं । जैन मतानुसार जीव छः प्रकार के होते हैं जिन्हें षटकाय कहते हैं- पृथ्वीकाय, अप्काय, अग्निकाय, वायुकाय वनस्पतिकाय तथा सकाय । वनस्पतिकाय तथा त्रसकाय जीवधारी होते हैं, इस बात को सामान्यतौर से सभी मत वाले मानते हैं, लेकिन पृथ्वी, अप, अग्नि तथा वायु भी स्वतः प्राणवान हैं ऐसा सिर्फ जैनधर्म ही मानता है । यह इसकी अपनी विशेषता है । इन षटकायों की हिंसा विभिन्न कारणों से होती है जैसे- पृथ्वीकाय की हिंसा पृथ्वी जोतने, तालाब - बावड़ी खुदवाने, महल बनवाने आदि से होती है । अप्काय की हिंसा स्नान करने, पानी पीने, कपड़े धोने आदि से होती है । भोजन पकाना, लकड़ी जलाना आदि से अग्निकाय की हिंसा होती है । सूप से अन्नादि साफ करना, ताल के पंखे या मोरपंख से हवा करना आदि वायुकाय की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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