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________________ २७४ जैन धर्म में अहिंसा हिंसा के कारण हैं । घर बनाना, बाड़ बनाना, विविध प्रकार के भवन बनाना, नौका, चंगेरी, हल, शकट आदि बनाना वनस्पतिकाय की हिंसा के कारण हैं। इसी प्रकार धर्म, अर्थ, काम के कारण विभिन्न त्रस प्राणियों की हिंसा होती है। __ जीव एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक होते हैं। तेरापंथी लोगों ने माना है कि हिंसा चाहे किसी भी प्राणी की हो, सब बराबर है। किन्तु हिंसा-अहिंसा की दृष्टि से जीवों में अन्तर देखा जाता है, जैसा कि नेमिनाथ के जीवन-चरित्र में पाया जाता है। वे अपनी शादी के समय स्नान करते हए अनेक अपकाय जीवों की हिंसा के संबंध में कुछ नहीं कहते हैं लेकिन शादी के अवसर पर कटने के लिए बंधे हुए भेड़-बकरों की चिल्लाहट को सुनकर द्रवित हो जाते हैं तथा उन सभी जानवरों को बन्धन से मुक्त करके स्वयं तपस्या करने चले जाते हैं। इसके अलावा एकेन्द्रिय जीव की हिंसा में कषाय की मात्रा बिल्कुल ही न्यून होती है किन्तु त्रसकाय अथवा पंचेन्द्रिय जीव की हिंसा में कषाय की मात्रा बहत ही अधिक होती है। पंचेन्द्रिय जीव अपने को किसी भी प्रकार के कष्ट से बचाने का प्रयास करते हैं, जिसके फलस्वरूप हिंसक को किसी प्राणी की हिसा करने के लिए अपने अन्दर अधिक क्रूरता तथा क्रोध का प्रबल आवेग लाना पड़ता है। अतः कषाय की मात्रा बढ़ जाती है। जिस हिंसा में कषाय की मात्रा जितनी ही अधिक होती है, वह उतनी ही बड़ी हिंसा होती है और जिसमें कषाय की मात्रा जितनी ही कम होती है, वह उतनी ही छोटी हिंसा होती है क्योंकि कषाय ही हिंसा का कारण है। तात्पर्य यह है कि हिंसा के भी स्तर होते हैं। हिंसा करनेवाले कुछ विशेष लोग तथा कुछ विशेष जातियां भी होती हैं। जैसाकि प्रश्नव्याकरण सूत्र में कहा है-सूअर का शिकार करनेवाला, मछली मारनेवाला, पक्षियों को मारनेवाला, मृगादि का शिकार करनेवाला आदि कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनके लिए हिंसा करना एक व्यापार-सा होता है। इसी तरह शक, यवन, सबर, बब्बर, मुरुण्ड, पक्कणिक, पुलिंद, डोंब आदि जातियों को भी प्रश्नव्याकरण सूत्र ने हिंसक जातियाँ घोषित किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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