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________________ २७२ जैन धर्म में अहिंसा अन्य सभी जीवों पर उसको यह अधिकार दिया है कि वह उन्हें अपने काम में लाए अर्थात् अपने भोजनार्थं वह अन्य जीवों की हत्या भी कर सकता है, यह बात मनुष्य की स्वार्थपरता की द्योतक है और अहिंसा - सिद्धान्त के प्रतिकूल है । ताओ धर्म के प्रणेता लाओत्से ने सबसे ज्यादा इस बात पर बल दिया है कि व्यक्ति कर्म करे किन्तु उसके कर्त्तापन एवं फल पर विचार न करे । यह सिद्धान्त गीता के 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन' की पुष्टि करता है । इससे अहिंसा को भी बहुत बड़ा समर्थन मिलता है । इससे भी आगे बढ़कर इनका यह कथन है कि हिंसा से जो घाव पैदा हो जाये उस पर प्यार का मरहम और दया की पट्टी लगाओ । अर्थात् हिंसा का प्रतिकार मत करो, उसे अहिंसा से शान्त करो । कनफ्यूशियस ने अपने शिष्यों को शिक्षा देते हुए कहा कि प्यार की बाढ़ ला दो, सर्वत्र प्यार का संचार करो । जो अच्छा व्यक्ति होता है वह सबका भला करता है। पीड़ितों की सहायता करो। दान दो पर केवल पैसे का ही नहीं बल्कि हार्दिक सहानुभूति का भी । इन बातों से अहिंसा के सामाजिक रूप को प्रश्रय मिलता है । I सूफी सम्प्रदाय में सांसारिक सभी वस्तुओं के त्याग का उपदेश दिया गया है जिससे हिंसा अहिंसा - सिद्धान्त अलग एवं अछूता रह जाता है, फिर भी इसमें प्रेमभाव को सर्वोच्च प्रतिष्ठा मिली है । इस सम्प्रदाय में प्रेम को ही ईश्वर माना गया है। ऐसा मानकर इसने निश्चित ही अहिंसा को बहुत महत्त्व दिया है । शिन्तो धर्म में पूजा-पाठ संबंधी जिस सिद्धान्त का प्रतिपादन हुआ है उसमें मांस का प्रयोग भी मिलता है और यह हिंसा का रूप है । किन्तु बाद में पाए जानेवाले उपदेशों में विश्व को एक परिवार माना गया है, साथ ही क्रोध को त्याग देने के लिए भी कहा गया है। इससे इतना तो समझना ही चाहिए कि इस धर्म का आध्यामिक पक्ष अहिंसा का भले ही समर्थन न करता हो, पर सामाजिक पक्ष अहिंसा का समर्थक एवं उदार है । जैनधर्म में हिंसा तथा अहिंसा का बड़ा ही विस्तृत एवं सूक्ष्म विवेचन हुआ है । इसके अनुसार प्रमादवश किसी भी प्राणी का घात करना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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