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गांधीवादी अहिंसा ।" अलावा अन्य किसी को दान या भीख देना समाज में आलस्य को बढ़ाना है, जो पापजनक कहा जा सकता है। इसका मतलब है कि गांधीवाद अनकम्पादान को पापजनक न मानकर पुण्यजनक मानता है। इसमें ऐसी चर्चा नहीं मिलती है जिससे जाहिर हो कि मुनि या यति लोगों को व्यक्तिगत दान मिलना चाहिए कि नहीं, फिर भी यह समझा जा सकता है कि गांधीवाद ने मुनि आदि को दान देने का कोई विधान नहीं बनाया है, यदि वे अपंग और अपाहिज न हों। सार्वजनिक कार्यों के लिए दान देना विहित है।
अहिंसा के अपवाद :
__ अहिंसा का विकास देखते हए यह पाया जाता है कि जैनधर्म में अहिंसा के मौलिक सिद्धान्त में कोई भी अपवाद नहीं है। अहिंसा धर्मपालन करनेवाले को चाहे जितना भी कष्ट क्यों न उठाना पड़े उसे सब कुछ बर्दाश्त करना चाहिए, जैसा कि महावीर के जीवन में देखा जाता है। किन्तु बाद में चलकर कुछ मुनियों ने अहिंसा के सिद्धान्त में अपवाद भी बना दिया है जैसे, निशीथचूणि में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति आचार्य की हत्या करता हो, या साध्वी के साथ बलात्कार करना चाहता हो तो उसकी हत्या करके भी आचार्य और साध्वी की रक्षा करनी चाहिए। इसके संबंध में कोंकण देशीय साधु द्वारा की गई तीन सिंहों की हत्या को उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत किया गया है। गांधीवाद यहाँ पर जैनधर्म से बहुत हद तक मिलता है। कारण, इसमें भी अहिंसा धर्म के बहुत से अपवाद मिलते हैं। इसने अहिंसा को वीरों का गुण बताते हुए कहा है कि जहाँ पर कायरता और हिंसा की बात हो वहाँ किसी को भी हिंसा को ही अपनाना चाहिए। समाज या देश या स्वयं अपने पर भी बिना कारण कोई आपत्ति या आक्रमण उपस्थित हो जाये तो वैसी हालत में अपनी रक्षा के लिए हिंसक कर्मों को भी अपनाना गलत नहीं कहा जा सकता। किन्तु दुःख-निवारण के लिए कोई अन्य चारा न रहने पर किसी पशु को मरवा देना सिर्फ गांधीवाद के अनुसार ही ठीक है, इससे जैनधर्म जरा भी सहमत नहीं होता।
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