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________________ २६२ जैन धर्म में अहिंसा अहिंसा का आर्थिक विवेचन : गांधीवाद ने अहिंसा का आर्थिक विवेचन किया है यानी हिसा के सिद्धान्त को अर्थशास्त्र पर लागू किया है। खादी पहनना तथा स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना आदि आर्थिक प्रश्नों के अहिंसात्मक समाधान हैं। परन्तु ऐसी बात जैनधर्म में नहीं पाई जाती है। इसमें अहिंसा को दो ही दृष्टियोंसे देखा गया है : धार्मिक और नैतिक । यद्यपि वस्त्रादि की मर्यादा इसमें मिलती है, भोजन की भी मर्यादाएं की गई हैं, किन्तु इनमें किसी भी रूप में आर्थिक भावना काम नहीं करती है। अहिंसा का सामाजिक विवेचन : गांधीवाद ने अहिंसा के सामाजिक पक्ष पर अधिक बल दिया है, इसकी अहिंसा में समाज-कल्याण की भावना बहुत ही प्रबल और जाग्रत है। गांधीजी ने अहिंसा के विभिन्न प्रकारों को बताते हुए कहा भी है कि लोक-कल्याण के लिए जो भी काम किये जाते हैं, वे सभी अहिंसा हैं। अतः जात-पांत के भेदभाव को दूर करने के लिए, खासतौर से उन दलित वर्गों के उद्धार के लिए, जो यथाकथित अछूत हैं, उन्होंने बहुत बड़ा आन्दोलन चलाया और बहुत दूरतक जातिगत या सम्प्रदायगत भेद-भावों को दूर करने में वे सफल भी रहे। किन्तु जैनधर्म में अहिंसा का व्यक्तिगत आधार प्रधान है। यद्यपि अपने कल्याण के निमित्त अहिंसा का अनुगमन करने से अन्य प्राणियों की भी रक्षा हो जाती है, दूसरे जीवों का भी कल्याण हो जाता है, पर अहिंसा-पालन का उद्देश्य आत्मकल्याण ही है, जन-कल्याण या समाजकल्याण नहीं। अहिंसा का राजनैतिक विवेचन : गांधीवाद ने देश की राजनैतिक समस्या के समाधान के लिए या देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए सत्याग्रह और असहयोग के रूप में अहिंसा को अपनाया है। यह गांधीवाद की एक अपनी विशेषता है, एक नया प्रयोग है जो जैनधर्म में नहीं मिलता। जैनधर्म ने स्थावर एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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