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________________ २४८ जैन धर्म में अहिंसा लिए जिह्वा को नियंत्रित करना आवश्यक होता है, और जो अपने जीवन में सत्य को उतार लेता है यानी जिसका जीवन सत्यमय हो जाता है, उसके जीवन में वह शुद्धता आ जाती है जो श्वेत स्फटिक में होती है ।' अतः परमेश्वर 'सत्य' है, यह कहने के बजाय सत्य ही 'परमेश्वर' है, यह कहना अधिक उपयुक्त है । ર્ जहाँ तक अहिंसा और सत्य के संबंध की बात है, गांधीजी ने कहा है कि सत्य सबसे बड़ा धर्म है और अहिंसा सबसे बड़ा कर्त्तव्य है तथा इस कर्त्तव्य को बार-बार करके ही कोई व्यक्ति सत्य की पूजा कर सकता है यानी सत्य एक साध्य है और अहिंसा एक साधन । संसार में सत्य के बाद कोई और सक्रिय शक्ति है तो वह अहिंसा ही है ।' अन्य स्थान पर उनके ( गांधीजी के ) वचन इस प्रकार हैं सत्य विधेयात्मक है, अहिंसा निषेधात्मक है । सत्य वस्तु का साक्षी है | अहिंसा वस्तु होने पर भी उसका निषेध करती है । सत्य है, असत्य नहीं है । हिंसा है, अहिंसा नहीं है । फिर भी अहिंसा ही होना चाहिए । यही परम धर्म है । सत्य स्वयं सिद्ध है | अहिंसा उसका सम्पूर्ण फल है, सत्य में वह छिपी हुई है । वह सत्य की तरह व्यक्त नहीं है । - सत्य का साक्षात्कार करनेवाले तपस्वी ने चारों ओर फैली हुई हिंसा में से अहिंसा देवी को संसार के सामने प्रकट करके कहा हैहिंसा मिथ्या है, माया है, अहिंसा ही सत्य वस्तु है । ब्रह्मचर्यं अस्तेय, अपरिग्रह भी अहिंसा के लिए ही हैं । ये अहिंसा को सिद्ध करनेवाले हैं | अहिंसा सत्य का प्राण है । उसके बिना मनुष्य पशु है। 1 १. गांधीजी, अहिंसा, प्रथम भाग, खंड १० } पृष्ठ ४५,४८. २. वही, पृ० ६३. ३. वही, द्वितीय भाग, आमुख के बादवाला पृष्ठ. ४. वही, प्रथम भाग, पृष्ठ ८७. ५. वही, पृ० ३९-४०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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