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________________ गांधीवादी अहिंसा २४७ प्रकार की क्षति करते हैं, तो ऐसी हालत में उस व्यक्ति का हिंसक या हानि पहुंचानेवाले जानवरों को न मारकर अन्य स्थान पर पहुँचाना अहिंसायुक्त दया होगी या हिंसायुक्त दया ? इस प्रकार की दया कभी भी अहिंसा का रूप नहीं ले सकती, वह सदा हिंसा ही कहलायेगी।' हमलोग दया-धर्म के नाम पर हिंसा को अनजान में उत्तेजन देते रहते हैं। घर पर आये हुए भिखारी को रोटी का एक टुकड़ा या एक-आध पैसा देकर हम समझते हैं कि हमने दया का बहुत बड़ा काम किया, जो पुण्यजनक है, यानी हम पुण्य के भागी हैं। किन्तु इससे भिखारियों की संख्या बढ़ती है, समाज में आलस्य और अकर्मण्यता बढ़ती है, जो हिंसा का ही एक रूप है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि किसी भी भिखारी को कुछ दिया ही न जाये। जो वास्तव में लूला, लंगड़ा, रोगी है, शरीर से असमर्थ है वह सहायता पाने के योग्य है उसकी सहायता करना सबका कर्तव्य होता है। लेकिन केवल ऐसा समझकर कि भीख देना दया है, पुण्य देनेवाला है, चोर, लम्पट सबको भिक्षा देना, सहायता करना हिंसा हो सकता है, अहिंसा नहीं।२ अहिंसा और सत्य : सत्य एक विशाल वृक्ष है। उसकी ज्यों-ज्यों सेवा की जाती है त्यों-त्यों उसमें अनेक फल आते हुए दिखाई देते हैं । उनका अंत ही नहीं होता। ज्यों-ज्यों हम गहरे पैठते हैं, त्यों-त्यों उनमें रत्न निकलते हैं, सेवा के अवसर आते हैं। सत्य को जाननेवाला तथा मन, वचन और काया (कर्म ) से सत्य को आचरित करनेवाला परमात्मा को जानता है। वह भूत, वर्तमान तथा भविष्य तीन कालों को जानता है और उसे देहत्याग से पूर्व ही मुक्ति मिल जाती है। सत्य के अधिष्ठान के १. गांधीजी, अहिंसा, प्रथम भाग, खण्ड १०, पृष्ठ ५५. २. वही, पृ० ६१. ३. वही, द्वितीय भाग, पृ० १६१. ४. वही, प्रथम भाग, पृ० ५१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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