SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गांधीवादी अहिंसा २३९ हिंसा तथा अहिंसा के विभिन्न रूप: भांधीजी के अनुसार अहम् या अहमत्व पर आधारित जितनी भी मानुषिक क्रियाएं हैं, वे सभी हिंसा ही हैं जैसे-स्वार्थ, प्रभुता की गावना, जातिगत विद्वेष, असन्तलित एवं असंयमित भोगतृप्ति, विशुद्ध भौतिकता की पूजा, अपने व्यक्तिगत और वर्गगत स्वार्थों का अंध साधन, शल और शक्ति के आधार पर अपनी कामनाओं की संतृप्ति करना, अपने अधिकार को कायम रखने के लिए बल का प्रयोग तथा अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का अपहरण आदि। ठीक इसके विपरीत अहिंसा अहम् भावना के विनाश में निहित है । अहिंसा वह मनःस्थिति है जिसमें मनुष्य का उज्ज्वलांश उद्दीप्त हो, वह अहंकार, स्वार्थ, भौतिक भोगों की लोलुपता से ऊंचा उठकर अपने व्यक्तित्व का विसर्जन विराट के कल्याण में कर देने में अपना विकास, अपनी प्रगति और अपना निश्रेयस् देखे । अर्थात् अहिंसा मात्र जीवदया ही नहीं है बल्कि स्वार्थ का त्याग, जनकल्याण के निमित किये गये कार्य, असंयमित भोगप्रवृत्ति का त्याग आदि अहिंसा के ही रूप हैं। सर्वभूतहिताय अहिंसा : __ अहिंसा मात्र मनुष्य जाति का ही हित करनेवाली हो यानी मनुष्यों के हित या लाभ के लिए अन्य प्राणियों का घात या किसी भी प्रकार को हानि को वह स्वीकार करे तो ऐसो अहिंसा गांधीजी के मतानुसार अहिंसा कहलाने का दावा नहीं कर सकती है। उन्होंने कहा है कि आदमी यदि अपने में वह शक्ति पैदा कर ले कि वह शेर-भालू आदि हिंसक पशुओं से भी प्रेम कर सके और बिना उनको हत्या किये भी काम चला सके तो अति उत्तम है। जो अहिंसा का पालन करता है वह प्राणी मात्र के प्रति सद्भावना रखता है । वह उन प्राणियों को भी गले लगाता है जो हिंसक हैं, विषेले हैं। पेड़-पौधों को १. गांधीजी, अहिंसा, प्रथम भाग, खण्ड १०, आमुख. २. " " , पृष्ठ ३१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy