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________________ २३८ जैनधर्म में अहिंसा ५. 'अहिंसा एक पूर्ण स्थिति है सारी मनुष्य जाति इसी एक लक्ष्य की ओर स्वभावतः, परन्तु अनजाने में जा रही है।" ६. 'अहिंसा प्रचण्ड शस्त्र है। उसमें परम पुरुषार्थ है। वह भीरु से भागती है। वह वीर पुरुष की शोभा है, उसका सर्वस्व है। यह शुष्क, नीरस, जड़ पदार्थ नहीं है यह चेतन है। यह आत्मा का विशेष गुण है।'२ इन परिभाषाओं में अहिंसा को विभिन्न दृष्टियों से देखा गया है। कभी तो इसे महाव्रत बताया गया है और कभी प्रचंड शस्त्रः कभी इसे सत्य का प्राण तथा सत्य तक पहुँचने का सन्मार्ग बताया गया है तो कभी इसे अपने आप में पूर्ण कहा गया है। इन वचनों से अहिंसा के विभिन्न गुणों पर प्रकाश पड़ता है : किन्तु तीसरी परिभाषा अहिंसा के सही रूप को व्यक्त करती है यानी प्राणीमात्र के प्रति दुर्भाव या कुभाव का अभाव ही अहिंसा है, कारण, जब तक किसी के प्रति मन में कुभाव नहीं आता, हिंसापूर्ण प्रवृत्ति जागती नहीं। अहिंसा का स्वरूप : गांधीजी ने भी माना है कि हिंसा केवल शरीर से ही नहीं बल्कि वचन और मन से भी होती है, जैसा कि 'अहिंसा' पुस्तक में लिखा है__ 'उनकी दृष्टि में जगत् में सारे प्राणी एक हैं, जहाँ तक जीव का संबंध है उनमें से किसी को हानि पहुँचाना हिंसा है। गांधी जा यहीं नहीं रुकते, किसी के प्रति हानि पहुँचानेवाली बात सोचना हिंसा में ही सम्मिलित है।'३ ___मन, वचन तथा काय से हिंसा करने का मतलब होता है कि हिंसा के दो रूप हैं-भाव हिंसा और द्रव्य हिंसा; और इसी आधार पर ऐसा भी कहा जा सकता है कि अहिसा के दो रूप हैं-भाव अहिंसा और द्रव्य अहिंसा। १. गांधीजी, अहिंसा, प्रथम भाग, खण्ड १०, पृष्ठ ८४. २. ". " ३. गांधीजी, अहिंसा, द्वितीय भाग, खण्ड १०, आमुख. .".. " , " १०१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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