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________________ पंचम अध्याय ગાંધીવાતી મહિંસા तथा जैनधर्म-प्रतिपादित अहिंसा गांधीवाद आधुनिक युग के प्रमुख वादों में से एक है। मात्र इसके नामोच्चारण से ही अधिकतर लोगों के सामने इसके जन्मदाता युगपुरुष महात्मा गांधी तथा इसके व्यावहारिक रूप की एक झलक-सी आ जाती है। चूंकि इसका व्यावहारिक रूप इसके सैद्धान्तिक रूपानुकूल ही है, यह आवश्यकता प्रतीत नहीं होती कि इसका विशेष परिचय भी दिया जाये। फिर भी इतना तो कहना ही होगा कि गांधीवाद केवल धामिक या दार्शनिक या राजनेतिक या समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों पर ही आधारित नहीं है बल्कि यह सब का एक मिलाजुला रूप है । इसमें भारतीय संस्कृति के सभी सिद्धान्तों का समन्वय हुआ है, इस समन्वयकरण में अहिंसा ही एक ऐसी शक्ति है जो अन्तःस्रोत का काम करती है। यद्यपि अहिंसा की धारा अति प्राचीनकाल से भारतवर्ष में प्रवाहित हो रही है, महात्मा गांधी को अहिंसा की ओर आकर्षित करने का श्रेय महात्मा काउन्ट लियो टाल्सटाय को है जिनके वचनों ने उनके मन-मन्दिर में अहिंसा रूपी दोपक को जलाया। गांधीजी ने स्वयं कहा है'उनकी पुस्तकों में जिस किताब का प्रभाव मुझ पर बहुत अधिक पड़ा उसका नाम है "किंगडम ऑफ हैवेन इज विदीन यू"। उसका अर्थ यह है कि ईश्वर का राज्य तुम्हारे हृदय में है। विलायत जाने के समय तो मैं हिंसक था, हिंसा पर मेरी श्रद्धा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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