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________________ २३६ tarai में अहिंसा थी और अहिंसा पर अश्रद्धा । यह पुस्तक पढ़ने के बाद मेरी यह अश्रद्धा चली गई ।" 1 रायचन्द भाई जेन ) तथा रस्किन का भी गांधीजी के जीवन पर काफी प्रभाव था । और इन सब प्रभावों के फलस्वरूप जब गांधीजी ने एक बार अहिसा के स्वरूप को पहचान लिया तब उन्होंने इसे इस तरह अपनाया कि वे स्वयं अहिंसामय हो गये २ अर्थात् जीवन के सभी क्षेत्रों में अहिंसा का ज्योतिर्मया मूर्ति को स्थापना कर दी । गांधीजी के जीवन का वर्णन यदि एक शब्द में किया जाय तो वह अहिसा है । उनक जोवन का स्वप्न, उनका सारा कार्यक्रम अहिंसा का हो स्वरूप था । इसी के लिये वह जीवित रहे और इसा के लिये मरे | उनके लेखों तथा कथन का अधिक भाग इसी विषय पर था और जो नहीं था वह भी इसी ध्येय का पूरक था । उनकी अहिंसा केवल सिद्धान्त अथवा विचार की सोमा में नहीं था, न राजनातिक आवश्यकता की सामयिक पुकार थी। वह मच्छर, पिस्सू और कीटाणुओं की हिंसा करने को बाध्य थे तो इस लिये नहीं कि इनकी हिंसा हिंसा न थी । केवल इसलिये कि विज्ञान ने कोई ऐसी विधि नहीं बताई, न मानव जीवन इतना प्रशस्त हो सका जो इनको हिंसा किये बिना मानव समाज की रक्षा कर सकं । इनको हिंसा को रोकने में वह असमर्थ थे और इसका उन्हें दुःख था । युद्ध में वह सम्मिलित हुए तो भी इसलिये नहीं कि हिंसा द्वारा विजय प्राप्त करने में उन्हें आनन्द था, केवल इसलिये कि १. गांधी साहित्य – ७, पृष्ठ २२५. से टाल्सटाय ने 'स्वर्ग · २. 'रायचन्द भाई ने अपने सजीव संसर्ग तुम्हारे हृदय में है' नामक पुस्तक द्वारा तथा रस्किन ने 'अनटु दिस लास्ट' - सर्वोदय नामक पुस्तक से मुझे चकित कर दिया ।' ( महात्मा गांधी की ) आत्मकथा, अनु० हरिभाऊ उपाध्याय, भाग २, पृष्ठ १००. ३. 'मैं अपने को अहिंसामय मानता हूँ' - गांधीजी, अहिंसा, प्रथम भाग, खण्ड १०, पृष्ठ ५४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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