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________________ १४७ जैन दृष्टि से अहिंसा १४७ हिंसा के विविध रूप : प्रश्नव्याकरण सूत्र में ही हिंसा के विविध रूपों पर भी प्रकाश डाला गया है, जो निम्न प्रकार से हैं-' १. पावो-पापः-पाप प्रकृतियों के बन्ध का कारण होने से पापरूप। २. चंडो-चण्ड:-क्रोध का प्रचण्ड रूप होने के कारण चण्ड कहलाती है। ३. रुहो- रौद्रः-रौद्ररूप से परिवर्तित होने की वजह से रौद्ररूप। ४. खुद्दो-क्षुद्र:-क्षुद्रजन द्वारा आचरित अथवा द्रोहकारी। ५, साहसिओ - साहसिकः-अविचारशील व्यक्तियों के द्वारा किये जाने के कारण अथवा सहसा किये जाने के कारण साहसिक रूप। ६. अणायरिओ-अनार्यः-अनार्य जनों के द्वारा विहित होने के कारण अनार्य रूप । ७. णिग्घिणो-निघृण:-करुणा पापजुगुप्सा इति-निर्दया अर्थात् दयारहित व्यक्तियों के द्वारा सेवित होने के कारण यह निर्दया रूप हुई। ८. णिस्संसो-नशस-क्रूर । ६. महब्भओ-महाभयः-महाभय को देनेवाली। १०. पइभओ-प्रतिभयः-प्रतिप्राणी को भय देनेवाली। ११. अतिभओ-अतिभय:-मरणान्त भयजनक होने के कारण अतिभय। १२. बीहणओ-चित्त को उद्वेग पहुंचानेवाली या भयोत्पादक । १३. तासणओ-त्रासनक:-त्रासजनक, अकस्मात् भय देनेवाली। १४. अणज्जो-अन्याय्यः-अन्यायरूप अथवा अनार्यों द्वारा आचरित। १५. उव्वेयणओ-उद्वेगजनक, चित्त में विप्लव पैदा करनेवाली। १६. हिरवयक्खो-निरपेक्ष-दूसरे प्राणियों के प्राण की उपेक्षा करनेवाली। १. प्रश्नव्याकरण, प्रथम श्रुतस्कन्ध (प्राश्रवद्वार), प्रथम अध्ययन, सूत्र १. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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