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________________ जैन धर्म में अहिंसा १२. आउयकम्मस्सुवद्दवो भेया णिठण गालणा य संवट्टग संखेवो-आयुकर्म का उपद्रव, भेद, निष्ठापन, गालना ( गलाना ), संप्रवर्तक, संक्षेप । १३. मच्चू-मृत्यु। १४. असंजमो-असंयम । १५. कडगमद्दणं-कटकमद्देनं-कटकेन सेन्येन कलिजेन आक्रम्य मईनं कटकमईनं । १६. वोरमणं-व्युपरमणं--प्राण को शरीर से अलग कर देना। १७. परभवसंकामकारओ-परभवसंकारमणकारक:--परभव यानी नरक-निगोदादि चतुर्गति संसार में परिभ्रमण कराने वाली। १८. दुग्गतिप्पवाओ-दुर्गतिप्रपातः--नरकादि दुर्गतियों में गिराने वाली। १९. पावकोवो-पापकोपश्च-पापकोप अर्थात् पाप प्रकृतियों को पोषण करनेवाली अथवा पाप और कोपरूप । २०. पावलोभो-पापलोभश्च-पापागमनद्वारलक्षण-पाप को लाने वाली। २१. छविछेओ-छविच्छेद-प्राणियों के शरीर का छेदन करनेवाली। २२. जीवियंतकरणो-जीवितान्तकरण :--जीवन का अन्त करने वाली। २३. भयंकरो-भयदायकः-भयंकर । २४. अणकरो-ऋणकर:--पापरूपी ऋण को करनेवाली। २५. वज्जो-वर्यः त्याज्यः, वज्रमिव वज्र गुरुत्वात् महामोह हेतुत्वात्-विवेकी पुरुषों द्वारा वर्जित अथवा वज्र-सा भारी, महामोह का कारण । २६. परितावणअण्हओ-परितापनाश्रव:--परितापनारूप आस्रव, प्राणियों को ताप देनेवाला आश्रय । २७. विणासो-विनाश:--विनाश । २८. निज्जवणो-निर्यापना-शरीर से प्राण को पृथक करनेवाली। २६. लुपणा-लोपना--प्राणी के प्राण का लोप करना। ३०. गुणाणं विराहण-गुणानां विराधना--ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि जीव के गुणों की विराधना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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