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________________ (१३) में जानकारी करनेवालों को जैन साहित्य रूपी सागर का मंथन न करना होगा और दूसरा लाभ यह है कि यदि वे पुस्तकों के रचना-काल पर ध्यान देंगे तो अहिंसा-सिद्धान्त की ऐतिहासिकता का भी ज्ञान उन्हें हो सकेगा। तृतीय अध्याय है 'जैनदृष्टि से अहिंसा' । यह अध्याय पुस्तक का हृदयरूप है । इसमें जैन-वाङ्मय में प्राप्त हिंसा-अहिंसा सम्बन्धी जो भी दार्शनिक विवेचन हैं उन पर प्रकाश डाला गया है; साथही हिंसा-अहिंसा की परिभाषा, प्रकार, साधन, फल आदि का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है जिसे पढ़कर कोई यह समझ सकता है कि अहिंसा का स्थान केवल नीतिशास्त्र में ही नहीं, बल्कि तत्त्वमीमांसा के क्षेत्र में भी है। चतुर्थ अध्याय है 'जैनाचार और अहिंसा' । इसमें श्रमणाचार एवं श्रावकाचार पर प्रकाश डालते हुए यह दिखाया गया है कि जैन मुनियों एवं गृहस्थों को अपने जीवन में अहिंसा के सिद्धान्त को उतारने के लिये किस प्रकार के विधिविधानों का पालन करना होता है। __ पंचम अध्याय है 'गांधीवादी अहिंसा तथा जैन धर्म प्रतिपादित अहिंसा'। आधुनिक युग में गांधीवाद अहिंसा का सबल समर्थक माना जाता है। किन्तु ऐसी बात नहीं है कि गांधीवादो अहिंसा जैनमत प्रतिपादित अहिंसा का अनुगमन करती है। दोनों में काफी अन्तर है । लेकिन ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि दोनों के बीच मेल या सामंजस्य नहीं है। कहाँ-कहाँ पर अहिंसा के सम्बन्ध में गांधीवाद एवं जैनमत एक दूसरे के निकट हैं और कहाँ-कहाँ पर दूर हैं, इसे ही प्रकाश में लाना इस अध्याय का उद्देश्य है। षष्ठ अध्याय है 'उपसंहार' । इसमें पूरे शोध-प्रबन्ध का सार है जिसे पढ़ लेने पर पाठक के सामने पूरी पुस्तक की एक झलक आ सकती है। इस कार्य में किसी न किसी रूप में मुझे अनेक लोगों से सहायता मिली है। उनमें से जिनके नाम अब तक आपके सामने आ गये हैं उन सबका मैं अत्यन्त ही ऋणी हूँ। पद्मभूषण डॉ० भीखन लाल आत्रेय, भूतपूर्व अध्यक्ष, दर्शन, मनोविज्ञान एवं भारतीय दर्शन तथा धर्म विभाग, काशी विश्वविद्यालय; प्रो० राजाराम शास्त्री, सदस्य, भारतीय लोक-सभा तथा भूतपूर्व कुलपति, काशी विद्यापीठ; पं० दलसुखभाई मालवणिया, अध्यक्ष, लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद; डॉ० के० शिवरामन् एवं डॉ० रमाशंकर मिश्र, रीडर, दर्शन उच्चानुशीलन केन्द्र, का० वि० वि० तथा डॉ० गुलाबचन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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