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जनेतर परम्परामों में हिंसा से निकला है जिसका अर्थ 'ऊन' है।"१ हुजवीरी ने कहा है कि सूफी शब्द 'सफा' से निकला है। किन्तु अधिकांश लोग 'सूफी' शब्द की उत्पत्ति 'सूफ' से ही मानते हैं. क्योंकि ऊन का व्यवहार पैगम्बरों के द्वारा बहुत दिन पहले से ही होता आ रहा है। इस परम्परा के जन्म के बारे में विश्वास किया जाता है कि महात्मा मुहम्मद ही इसके भी जन्मदाता थे। कारण, इसका विकास इस्लाम से ही हुआ है। मुहम्मद साहब को दो प्रकार के ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हए थे, जिनमें से एक को उन्होंने कूरान के माध्यम से व्यक्त किया और दूसरे को अपने हृदय में धारण किया। कुरान का ज्ञान सब लोगों के लिए प्रसारित किया गया लेकिन अपनी हार्दिक ज्योति को कुछ अपने चुने हुए शिष्यों में प्रतिष्ठापित कर दिया। उनका किताबी ज्ञान ( कुरान का ज्ञान ) 'इल्म-ई-सफिन' ( IIm-i-Safina) और हार्दिक ज्ञान 'इल्म-ई-सिन' ( IIm-i Sina) था। वह हार्दिक ज्ञान रहस्यपूर्ण था जिसे धारण करने वाले रहस्यकारी सूफी कहलाए। हवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में मारूफ अल-करखी ने सूफी मत को परिभाषित करते हुए कहा है-'परमात्मा विषयक सत्यासत्य का ज्ञान और सांसारिक वस्तुओं का परित्याग ही सूफी मत है।" ऐसी स्थिति में तो हिंसा-अहिंसा का कोई प्रश्न ही नहीं उठ सकता है। कारण, जहाँ किसी वस्तु के प्रति लोभ, किसी व्यक्ति के प्रति राग या किसी वस्तु के प्रति हेय भाव और किसी व्यक्ति के प्रति द्वेष भाव होता है, वहीं हिंसा होने की संभावना होती है। लेकिन संसार से पूर्णतः संन्यास ले लेने पर तो ऐसी समस्या ही उठ खड़ी नहीं होती है।
__इतना ही नहीं, सूफी प्रेम की आवाज सबसे ज्यादा बुलन्द करते हैं। वे परमात्मा को प्रियतम मानते हैं और ऐसा सोचते हैं कि सांसारिक प्रेम के माध्यम से प्रियतम के निकट पहुँचा जा सकता १. सूफीमत-साधना और साहित्य-रामपूजन तिवारी, पृ० १६६. २. वही, पृ० १७१. 3. G. W. R., p. 258. ४. सूफीमत-साधना और साहित्य, पृ० २१२.
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