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________________ जैन धर्म में हिंसा ६ बाढ़ ला दो और मंत्री का संचार करो" । जो लोग अच्छे होते हैं वे सबको प्यार करते हैं, दूसरों की अच्छाई को देखते तथा अपनी ही तरह दूसरों का भी उत्थान चाहते हैं । एक श्रेष्ठ व्यक्ति पीड़ितों की सहायता करता है लेकिन धनवानों के लिए धन-वैभव की वृद्धि नहीं करता । चार समुद्रों के आस-पास जितने भी लोग हैं ये सब उसके भाई हैं । यदि तुम दान करते हो तो दिल का दान ( Charity of heart ) करो, यानी मात्र दानी कहलाने के लिए किसी को कुछ मत दो बल्कि जिसे तुम कुछ देते हो उसके प्रति हार्दिक सहानुभूति रखो । सब एक-दूसरे को प्यार करो । जो श्रेष्ठ होता है वह सबके प्रति सहानुभूति रखता है । वह दूसरों की महानता या विशिष्टता को देखकर द्वेष नहीं करता । वह निम्न आचरण के व्यक्ति को देखकर घृणा नहीं करता । बल्कि वह अपने आपके आन्तरिक रूप का अध्ययन करता है अर्थात् वह अपने में देखता है कि क्या वे कलुषित भाव उसमें भी हैं जो दूसरों में वह देख रहा है । वह उत्तेजक बातों पर ध्यान नहीं देता, - सबके प्रति विनम्र भाव रखता है लेकिन चापलूसी करना पसन्द नहीं करता । वह अपने से निम्नस्तरीय लोगों के प्रति द्वेष भाव नहीं रखता और न उच्चस्तरीय लोगों से पक्षपात ग्रहण करने का भाव रखता है । इन बातों को देखने से मालूम होता है कि भले ही कनफ्यूशियस ने निषेधात्मक अहिंसा पर उतना जोर नहीं दिया हो, लेकिन विधेयात्मक अहिंसा पर अधिक बल दिया है और खास तौर से सामाजिक समानता को तो उसने अपनाया ही है । सूफी सम्प्रदाय : सर्वप्रथम 'सूफी' शब्द सन् ८१५ ई० में प्रकाश में आया । विभिन्न विद्वानों ने इसके अलग-अलग अर्थ लगाए हैं । अबू नसर अल-सराज ने अपनी पुस्तक 'किताब अल- लुमा' में 'सूफी' शब्द पर विचार करते हुए बतलाया है कि 'सूफी' शब्द अरबी 'सूफ' शब्द 1. G. W. R., p. 233. 2. G. W. R., pp. 233-234. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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