SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ जैन धर्म में हिंसा है। मानवीय प्रेम तो आध्यात्मिक प्रेम का साधन है।' प्रेम ईश्वर के सार का भी सार है और ईश्वर-पूजन का यह सर्वोच्च रूप है। इस तरह जहाँ प्रेम को अपनाया गया है वहीं हिंसा हो सकती है, ऐसा सोचना गलत नहीं तो और क्या होगा। कहने का तात्पर्य यह है कि सूफी परम्परा में भी अहिंसा के सिद्धान्त को अच्छा प्रश्रय मिला है। शिन्तो-परम्परा : शिन्तो ( Shinto ) जापान का वह धर्म है जिसकी उत्पत्ति जापान में ही हुई थी। इससे जापान की धार्मिक भूमिका का पता लगता है, क्योंकि जिस समय शिन्तो मत का प्रादुर्भाव हुआ उस समय जापान में अन्य किसी बाहरी धर्म का आगमन नहीं हो पाया था। उस समय जापानी लोग प्रकृति की पूजा करते थे । परन्तु बाद में वहाँ बौद्ध धर्म ने भारत से जाकर अपनी जड़ जमा ली। शिन्तो का शाब्दिक अर्थ होता है देव-मार्ग अर्थात देवताओं तक पहचाने वाला या उनकी सन्निकटता प्राप्त कराने वाला मार्ग (The way of the gods) | शिन्तो शब्द के अन्त में जो 'तो' लगा है वह चीन के ताओ ( Tao ) का प्रभाव है। 'शिन्तो' वास्तव में चीनी शब्द है जिसका समानार्थक जापानी में 'कामी नो मीची' (Kami no michi) होता है। इसका भी अर्थ होता है श्रेष्ठजन तक ले जाने वाली राह। ___इस परम्परा के प्रधान ग्रन्थ कोज़िकी ( The Kojiki ), fastarit (The Nihongi), Azat fgt3 (The Manyo-shiu), तथा येन्गी शिकी ( The Yengi shiki ) हैं जिनका रचना-काल क्रमशः सन् ७१२ ई०, सन् ७२० ई०, ८वीं एवं 8वीं शती के बीच १. वही, पृ० ३१६.. 2. G. W. R., p. 266. 3. Shintoism-A. C. Underwood, p. 14. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy