________________
निश्चय-व्यवहार मोक्षमार्गों में साध्य-साधकभाव / १६३
संरक्षणादि की चिन्ता से हम उतने ही अधिक मुक्त हो जाते हैं। अत: अपरिग्रह के निमित्त से असातावेदनीय एवं तीव्रकषाय के उदय का निरोध होता है, जिससे विशुद्धता का विकास निर्बाध चलता रहता है।
आचार्य अमृतचन्द्रजी ने कहा है --- “यद्यपि रागादिभावरूप हिंसा की उत्पत्ति में बाह्य वस्तु कारण नहीं है ( चारित्रमोह का उदय कारण है ), तथापि रागादिपरिणाम परिग्रहादि के निमित्त से ही होते हैं, इस कारण परिणामों की विशुद्धि के लिए हिंसा के निमित्तभूत परिग्रहादि का त्याग करना चाहिए।'
वे आगे कहते हैं – “मूर्छा ( ममत्वपरिणाम ) को आभ्यन्तर परिग्रह कहते हैं, वह बाह्य परिग्रह के निमित्त से भी उत्पन्न होती है। अत: दोनों प्रकार के परिग्रह का त्याग करना चाहिए।"३
सिद्धान्ताचार्य पंडित कैलाशचन्द्र जी शास्त्री लिखते हैं -- “रागद्वेष दूर करने के लिए या कम करने के लिए बाह्य पदार्थों का भी त्याग किया जाता है। स्वभाव में लीन होने के लिए क्रम से बाह्य प्रवृत्ति को रोकना होता है और बाह्य प्रवृत्ति को रोकने के लिए प्रवृत्ति के विषयों को त्यागना होता है। अत: स्वभाव में लीन होने के लिए यह आवश्यक है कि हम अव्रत से व्रत की ओर आयें। ज्यों-ज्यों हम स्वभाव में लीन होते जायेंगे, प्रवृत्तिरूप व्रतनियमादि स्वत: छूटते जायेंगे।
___ संक्लेशपरिणामों का निरोध भक्ति एवं स्वाध्याय से भी होता है, किन्तु उनमें चित्त की एकाग्रता तब तक सम्भव नहीं है, जब तक इन्द्रियों की भोगवृत्ति नियन्त्रित नहीं हो जाती। इन्द्रियों के निरन्तर उद्दीपन से पीड़ित चित्त, विषयों की
ओर ही बार-बार जाता है। ऐसे चित्त का भक्ति में एकाग्र होना दुष्कर है। इस अवस्था में स्वाध्याय तो और भी असम्भव है, क्योंकि भक्ति में तो कुछ सरसता भी होती है, किन्तु स्वाध्याय तो एकदम नीरस एवं क्लिष्ट कार्य है। इसीलिए. आगम में इन्द्रियों का भोगव्यसन श्रुतज्ञानावरण का नोकर्म अर्थात् बाह्य निमित्त कहा गया है। जो विषयों में लीन रहता है उसकी रुचि तत्त्वचिन्तन की ओर उन्मुख नहीं होती। इसलिए १. सूक्ष्मापि न खलु हिंसा परवस्तुनिबन्धना भवति पुंसः । हिंसायतननिवृत्तिः परिणामविशुद्धये तदपि कार्या ।।
पुरुषार्थसिद्ध्युपाय/कारिका ४९ २. “मूर्छा तु ममत्वपरिणामः।" वही/कारिका, १११ ३. पुरुषार्थसिद्ध्युपाय/कारिका ११३, ११८ ४. द्रव्यस्वभावप्रकाशकनयचक्र/विशेषार्थ/गाथा ३४२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org