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________________ व्यवहारनय के भेद / १३१ ( असद्भूत ) को ही जीव और शरीर तथा जीव और रागादि के कथंचित् अभेद को दर्शानेवाला कहा है। इसलिये यदि असद्भूतव्यवहारनय के उपर्युक्त ( द्रव्यपर्यायावलम्बी और भावपर्यायावलम्बी ) भेदों को ध्यान में रखा जाय तो द्रव्यपर्याय और भावपर्याय में अथवा द्रव्यकर्म और भावकर्म में अभेदबुद्धि का प्रसंग नहीं आएगा। अब इन तीन नयों के आश्रय से आचार्यों ने जो निरूपण किये हैं उनके कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहे हैं - अशुद्धनिश्चयनयात्मक निरूपण आचार्य कुन्दकुन्द ने जीव को कर्मोपाधिजनित मोहरागद्वेषादि भावों का निश्चयनय से कर्ता-भोक्ता कहा है – कम्मजभावेणादा कत्ता भोत्ता दु णिच्छयदो।' यहाँ 'निश्चय' शब्द से 'अशुद्धनिश्चय' इष्ट है, जैसा कि वृत्तिकार श्री पद्मप्रभमलधारिदेव की व्याख्या से ज्ञात होता है - “आत्मा हि अशुद्धनिश्चयनयेन सकलमोहरागद्वेषादिभावकर्मणां कर्ता भोक्ता च। ३ बृहद्र्व्यसंग्रह के टीकाकार ब्रह्मदेव ने आठवीं गाथा के 'णिच्छयदो चेदणकम्माणादा' अंश की व्याख्या करते हुए कहा है कि जीव का रागादि विकल्परूप चेतनकर्मों का कर्ता होना अशुद्धनिश्चयनय से घटित होता है। उन्होंने 'अशुद्धनिश्चय' शब्द का अर्थ भी स्पष्ट किया है। वे कहते हैं – 'अशुद्ध' शब्द रागादि के कर्मोपाधिजन्य होने का सूचक है तथा 'निश्चय' शब्द सोपाधिक अवस्था में आत्मा के तन्मय ( रागादिमय ) होने का। दोनों के मेल से 'अशुद्धनिश्चय' शब्द निष्पन्न हुआ है। ___ भगवत्कुन्दकुन्ददेव ने 'रागो दोसो मोहो जीवस्सेव अणण्णपरिणामा" इस गाथांश में भी अशुद्धनिश्चयनय से उपपन्न होने के कारण ही राग, द्वेष और मोह १. समयसार/आत्मख्याति/गाथा ४६ २. नियमसार/गाथा १८ ३. वही/तात्पर्यवृत्ति/गाथा १८ ४. “भावकर्मशब्दवाच्यरागादिविकल्परूपचेतनकर्मणामशुद्धनिश्चयेन कर्ता भवति। अशुद्ध निश्चयस्यार्थः कथ्यते कर्मोपाधिसमुत्पन्नत्वाद् अशुद्धः, तत्काले तप्ताय:पिण्डवत् तन्मयत्वाच्च निश्चयः। इत्युभयमेलापकेनाशुद्धनिश्चयो भण्यते।" बृहद्र्व्य संग्रह/ब्रह्मदेवटीका/गाथा ८ ५. समयसार/गाथा ३७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002124
Book TitleJain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size12 MB
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