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________________ असद्भूतव्यवहारनय / ७५ जीव और पुद्गल में परस्परावगाहसम्बन्धरूप बन्ध सिद्ध होता है । और उन्होंने यह भी बतलाया है कि जब आत्मा का अनादिबद्धस्पृष्टत्व पर्याय से अनुभव किया जाता है तब उसका बद्धस्पृष्टत्व ( कर्मों से बद्ध होना ) भूतार्थ ठहरता है -- “तथात्मनोऽनादिबद्धस्पृष्टत्वपर्यायेणानुभूयमानतायां बद्धस्पृष्टत्वं भूतार्थम् ।'' इसका तात्पर्य यही है कि परद्रव्यसंश्लेषसम्बन्धावलम्बिनी असद्भूतव्यवहारदृष्टि से देखने पर ही आत्मा के कर्मबद्ध होने की वास्तविकता दृष्टि में आती है। आचार्य कुन्दकुन्द के "जीवे कम्मं बद्धं पुढं चेदि ववहारणयभणिदं"" इस कथन से भी यही बात सिद्ध होती है। आगम में जीव और पुद्गल के विश्लेषसम्बन्ध का भी वर्णन किया गया है । यथा “बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः । " ,३ - बन्धहेतुओं के अभाव तथा निर्जरा के द्वारा समस्त कर्मों का आत्मा से विश्लेष होना मोक्ष है। “जीवेन सहात्यन्तविश्लेषः कर्मपुद्गलानां च मोक्ष इति । ' - कर्मपुद्गलों का जीव से अत्यन्त विश्लेष होना मोक्ष कहलाता है । जीव और पुद्गल का यह संश्लेष और विश्लेष सम्बन्ध बाह्यसम्बन्धावलम्बिनी असद्भूतव्यवहारदृष्टि से अवलोकन करने पर दृष्टिगोचर होता है । " निश्चयदृष्टि जीव और पुद्गल के प्रदेशभेदरूप मौलिक भेद का ही अवलम्बन करती है । अतः उससे अवलोकन करने पर संश्लेषसम्बन्ध अभूतार्थ ठहरता है। इससे विश्लेषसम्बन्ध स्वतः अभूतार्थ सिद्ध हो जाता है। لاور जीव और शरीर के कथंचित् अभेद का निश्चय परद्रव्य-संश्लेषसम्बन्धावलम्बिनी असद्भूतव्यवहारदृष्टि से देखने पर ही जीव और शरीर के कथंचित् अभेद की प्रतीति होती है। जीव और शरीर का संश्लेष अनोखा संश्लेष है । किन्हीं भी अन्य वस्तुओं के संश्लेष की उपमा से इसका यथावत् बोध नहीं कराया जा सकता । शरीर और Jain Education International १. समयसार / आत्मख्याति /गाथा १४ २ . वही / गाथा, १४१ ३. तत्त्वार्थसूत्र, १० / २ ४. पञ्चास्तिकाय / तत्त्वदीपिका/गाथा १०८ ५. " ननु वर्णादयो बहिरङ्गास्तत्रव्यवहारेण क्षीरनीरवत् संश्लेषसम्बन्धो भवतु """ समयसार/तात्पर्यवृत्ति/गाथा ५७ For Private & Personal Use Only *** www.jainelibrary.org
SR No.002124
Book TitleJain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size12 MB
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