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________________ जैन योग-साहित्य अध्यात्मतत्त्वालोक' इस ग्रन्थ के रचयिता मुनि न्यायविजय हैं। इस ग्रन्थ का प्रतिपाद्य विषय योग है । इसमें आठ प्रकरणों के निर्देश इस प्रकार हैं : प्रथम प्रबोधन नामक प्रकरण में आत्मा के विकास का वर्णन है। द्वितीय पूर्वसेवा नामक प्रकरण में गुरु, माता-पिता तथा अपने से बड़ों की पूजा का वर्णन है। तृतीय अष्टांग नामक प्रकरण में आठ योगों का निरूपण है। चतुर्थ कषाय नामक प्रकरण में कषायों पर जय पाने का विस्तृत वर्णन है। पञ्चम ध्यानसामग्री प्रकरण में चञ्चल मानसिक वृत्तियों को स्थिर रखने के उपाय बतलाये गये हैं। पष्ठ ध्यानसिद्धि प्रकरण में आगमोक्त चार प्रकार के ध्यानों का विवेचन है। ___ सप्तम योगश्रेणी प्रकरण में योग की विभिन्न श्रेणियों को बतलाते हए योग की उस उच्चतम अवस्था का उल्लेख है, जहाँ से आत्मा कभी लौटती नहीं। ___ अष्टम या अन्तिम उद्गार नामक प्रकरण में साधु-असाधु अथवा ज्ञानी-अज्ञानी के आत्मतत्त्व पहचानने के उपाय बतलाये गये हैं। साम्यशतक' यह १०६ श्लोकों में निबद्ध विजयसिंहसूरि की रचना है। इस पुस्तक की विषयवस्तु समाधिशतक जैसी ही है । योगप्रदीप २३ प्रकाशों में विभक्त इस ग्रन्थ के कर्ता उपाध्याय श्रीमंगलविजयजी महाराज हैं। इस ग्रन्थ का दूसरा नाम 'आहत-धर्म प्रदीप' भी है। ग्रन्थकार ने पूर्ववर्ती जैन ग्रन्थों का अनुगमन किया है, फिर भी अपनी १. श्री हेमचन्द्राचार्य जैन सभा, पाटन द्वारा वीर नि० सं० २४६९ में प्रकाशित । २. ए० एम० एण्ड कम्पनी, बम्बई की ओर से सन् १९१८ में प्रकाशित । ३. हेमचन्द सवनचन्द शाह, कलकत्ता द्वारा वीर नि० सं० २४६६ में प्रकाशित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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