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________________ जैन योग का आलोचनात्मक अध्ययने प्रसंगवश दोनों परम्पराओं के योगों में समानता एवं असमानता पर भी प्रकाश डाला गया है। योगविशिका में योगसूत्रगत समाधि की तुलना जैन ध्यान से की गयी है। ___५. योगदृष्टिनी सज्झायमाला-यह गुजराती भाषा की रचना है। योगदृष्टिसमुच्चय में प्रतिपादित आठ दृष्टियों का ही सम्यक् विवेचन प्रस्तुत करना इस का प्रतिपाद्य है । ध्यानदीपिका यह देवेन्द्रनन्दि की वि० सं० १७६६ में लिखी गुजराती रचना है। छह खण्डों में विभक्त इस कृति में बारहभावना, रत्नत्रय, महाव्रत, ध्यान, मन्त्र तथा स्याद्वाद का निरूपण है। ध्यानविचार: इसकी हस्तलिखित प्रति पाटन के शास्त्र-भण्डार में है। यह गद्यात्मक है । इसमें भावना, ध्यान, अनुप्रेक्षा, भावनायोग, काययोग एवं ध्यान के २४ भेदों का विवेचन है। वैराग्यशतक' यह धनदराज की कृति है। इसमें १०८ पद्य हैं । दूसरे श्लोक में इस ग्रन्थ को शमशतक भी कहा गया है । इसमें योग, काल की करालता, विषयों की विडम्बना और वैराग्यपोषक तत्त्वों का निरूपण है। अध्यात्मकमलमार्तण्ड' कवि राजमल्ल विरचित इस ग्रन्थ में २०० श्लोक हैं। इसमें चार परिच्छेद तथा मोक्षमार्ग, द्रव्य-लक्षण, द्रव्य-विशेष और जीवादि सात तत्त्वों का निरूपण है। १. अध्यात्मज्ञान प्रसारक मण्डल द्वारा सन् १९२९ में प्रकाशित । २. यह ग्रन्थ जैन साहित्य विकास मण्डल, बम्बई से सन् १९६१ में प्रकाशित हुआ है। ३. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भा० ४, पृ० २२३ ४. यह कृति माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला से वि० सं० १९९३ में प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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