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________________ जैन योग का आलोचनात्मक अध्ययन शताब्दी है।' इस ग्रन्थ का प्रतिपाद्य विषय मुख्यतः ध्यान है और ध्यान के नैमित्तिक एवं सहायक तत्त्वों का विश्लेषण-विवेचन भी हैं। मोक्ष-प्राप्ति के लिए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यकचारित्र की अनिवार्यता निरूपित है। मन को एकाग्रता के लिए ध्यान का महत्त्व बतलाया गया है, इसलिए ध्यान के भेदों का विशेष वर्णन है । मन्त्र, जप, आसन आदि का भी वर्णन है। पाहुडदोहा" इस ग्रन्थ के रचयिता मुनि रामसिंह हैं। डा० हीरालाल जैन के अनुसार इनका समय ई० सन् ९३३ और ११०० के बीच अर्थात् १००० के आसपास होना चाहिए । यद्यपि इस ग्रन्थ का प्रतिपाद्य योगिन्दुदेवकृत परमात्मप्रकाश और योगसार से साम्य रखता है, तथापि इस ग्रन्थ में बहुत से ऐसे दोहे हैं जिनमें बाह्य क्रियाकाण्ड की निष्फलता तथा आत्मसंयम और आत्मदर्शन में ही सच्चे कल्याण का उपदेश है। झूठे जोगियों को खूब फटकारा गया है। इसमें योग एवं तन्त्र सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दों के भी दर्शन होते हैं, जैसे शिव, शक्ति, देहदेवली, सगुण-निर्गुण, दक्षिण-मध्य आदि । इस ग्रन्थ में २२२ दोहे हैं । यह अपभ्रश भाषा में है। ज्ञानार्णव आचार्य शुभचन्द्रकृत इस ग्रन्थ के दो अन्य नाम भी मिलते हैं (ब) सम्पादक, जुगलकिशोर मुख्तार, वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, दिल्ली, सन्, १९६३ १. तत्त्वानुशासन, प्रस्तावना, पृ० ३४ २. सम्पादक, डा. हीरालाल जैन, कारंजा जैन पब्लिकेशन कारंजा, सन् १९३३ ३. भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ० ११९ ४. (अ) रायचन्द जैन ग्रन्थमाला, बम्बई, ई० सं० १९०७ इस ग्रन्थ पर तीन टीकाएं प्राप्त होती हैं, जिनके टीकाकार हैं श्रुतसागर, नमविलास और अज्ञात । (आ) जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, ई० स० १९७७, श्री पं० बालचन्दजी शास्त्री द्वारा सम्पादित संस्करण । Jain Education International For Private & Personal Use Only .. www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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