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________________ जैन योग-साहित्य ४५. पूर्वपीठिका है। इसमें बताया गया है कि मन को बाह्य विषयों से हटाकर आत्मध्यान की ओर प्रेरित करना चाहिए। इस ग्रन्थ का रचना-काल ई० ९वीं शताब्दी का मध्यभाग है। योगासारप्राभृत* ___इस संस्कृत ग्रन्थ के रचयिता मुनि अमितगति हैं, जिसमें ५४० श्लोक हैं। रचना-काल ई० १०वीं शताब्दी है। इसमें ९ अधिकार हैं--(१) जीव, (२) अजीव, (३) आस्रव, (४) बन्ध, (१) संवर, (६) निर्जरा, (७) मोक्ष, (८) चारित्र, एवं (९) चूलिका । इस ग्रन्थ में योगसम्बन्धी अपेक्षित विषय का विस्तृत वर्णन है। इनके अतिरिक्त जीव-कर्म का सम्बन्ध, जीव-कर्म के कारण, कर्म से छूटने के उपाय, ध्यान, चारित्र आदि का भी वर्णन है। अन्त में मोक्ष के सम्बन्ध में भी प्रकाश डाला गया है । मुनि एवं श्रावक के व्रतों की भी चर्चा है। ज्ञानसार यह योगपरक एक नातिदीर्घ महत्त्वपूर्ण प्राकृत ग्रन्थ है। इसमें कुल ६३ गाथाएं हैं। इसके रचयिता मुनि पद्मनन्दि हैं जिनका समय विक्रम सं० १०८६ है। यद्यपि इस ग्रन्थ के वर्ण्यविषय ज्ञानार्णव के ही अनुसार हैं और इसमे ध्यान के भेद-प्रभेद, विविध प्रकार के मन्त्र एवं जप, शुभ-अशुभ के फल आदि का वर्णन हुआ है; तथापि इन विषयों के प्रतिपादन में रोचकता एवं स्पष्टता अधिक है। ध्यानशास्त्र अथवा तत्त्वानुशासन . इस ग्रन्थ के लेखक रामसेनाचार्य हैं, जिनका समय विक्रम की १०वीं १. भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ० १२१ २. (अ) हिन्दी अनुवाद के साथ पन्नालाल बाकलीवाल द्वारा सम्पादित, कल कत्ता, प्रथम संस्करण, १९१८ (ब) भाष्य के साथ जुगलकिशोर मुस्तार द्वारा सम्पादित, भारतीय ज्ञान पीठ, वाराणसी, सन् १९६९ ३. सम्पादक, मूलचन्द किसनदास कापड़िया, दिगम्बर जैन पुस्तकालय, काप डिया भवन, सूरत, वीर नि० सं० २४७० ४. (अ) माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, शोलापुर, प्रथम संस्करण, वि० सं० १९७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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