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________________ बैन योम-साहित्य छोड़, शेष सात का विषय यहाँ स्फुट रूप से जैन परम्परानुसार पाया जाता है।' समाधितन्त्र __ यह भी कुन्दकुन्दाचार्य की रचना है। इसमें ध्यान तथा भावना का निरूपण है । इस पर पर्वतधर्म और नाथूमल रचित दो टीकाएँ भी थीं, जो अनुपलब्ध हैं। तत्वार्थसूत्र __ इस ग्रन्थ के प्रणेता आचार्य उमास्वाति या उमास्वामी हैं। इनका समय विक्रम की पहली से चौथी शती के बीच में आंका जाता है। इस ग्रन्थ में जैनदर्शन का पूर्णरूपेण समावेश हुआ है। इस ग्रन्थ पर श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों आम्नायों के आचार्यों ने अनेक टीकाएँ अथवा भाष्य लिखे हैं। यह मोक्ष-मार्ग प्रतिपादक एक अनूठा सूत्रग्रन्थ है। इसमें दस अध्याय हैं। पहले अध्याय में ज्ञान-क्रिया का वर्णन है। दूसरे से लेकर पांचवें अध्याय तक ज्ञेय का और छठे से लेकर दसवें तक चारित्र का वर्णन है। योग-निरूपण में प्रायः चारित्र का ही वर्णन होता है, क्योंकि चारित्र के पालन से ही आध्यात्मिक विकास होता है। इष्टोपदेश योग विषयक आचार्य पूज्यपादकृत जो दो संस्कृत रचनाएँ उल्लेखनीय हैं, उनमें एक इष्टोपदेश है। आचार्य पूज्यपाद का समय विक्रम की पाँचवीं-छठी शती है । इष्टोपदेश ५१ श्लोकों की छोटी-सी रचना १. डा. हीरालाल जैन, भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ० ११६ २. इस नाम से पूज्यपाद एवं यशोविजयगणि की भी रचनाएँ प्राप्त हैं । -जिनरत्नकोश, पृ०४२१ ३. वही। ४. तत्त्वार्थसूत्र ( पं० सुखलाल-विवेचन ), प्रस्तावना, पृ० ९ ५. विशेष के लिए देखिए, वही। ६. आशाधर-टीका, अनुवादक-धन्यकुमार तथा चम्पतराय, प्रकाशक-रायचन्द्र जैन शानमाला, बम्बई, १९५४ ७. इष्टोपदेश, पृ०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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