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________________ भारतीय परम्परा में योग अवश्य रहा है। कहा गया है कि विद्वानों का भी कोई यज्ञ-कर्म बिना योग के सिद्ध नहीं होता।' इस कथन से योग की महत्ता सिद्ध है। योगाभ्यास तथा योग द्वारा प्राप्त विवेक-ख्याति के लिए प्रार्थना की गयी है कि ईश्वर की कृपा से हमें योगसिद्धि होकर विवेकख्याति तथा ऋतम्भरा प्रज्ञा प्राप्त हो और वही ईश्वर अणिमा आदि सिद्धियों सहित हमारी तरफ आवें। प्रार्थना के ही क्रम में कहा गया है कि हम (साधक लोग) हर योग में, हर मुसीबत में परम ऐश्वर्यवान् इन्द्र का आवाहन करें। दीर्घतमा ऋषि के कथन से भी योग को सार्थकता एवं महनीयता लक्षित होती है। उनका यह कथन है कि “मैंने प्राण का साक्षात्कार किया है, जो सभी इन्द्रियों का त्राता है और कभी नष्ट नहीं होनेवाला है, वह भिन्न-भिन्न नाड़ियों के द्वारा अन्दर-बाहर आता-जाता है, तथा यह अध्यात्मरूप में वायु, आधिदैवरूप में सूर्य है।" इनके अतिरिक्त अभयज्योति" तथा परमव्योमन् ' को प्राप्ति के सन्दर्भ में भी प्रकारान्तर से योग का ही वर्णन हुआ है। प्राणविद्या के अन्तर्गत योग की साधना का उल्लेख भी वेदकालीन योग के प्रचलन की पुष्टि करता है। योग शब्द कई बार प्रयुक्त होकर 'जोड़ना' या 'मिलाना' अर्थ को व्यंजित करता है, जो योग की उपस्थिति का ही प्रमाण है।' ऋग्वेद में लिखा है कि 'सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ ही उत्पन्न हुए जो सम्पूर्ण विश्व के एकमात्र १. यस्मादृते न सिध्यति यज्ञो विपश्चितश्चन । स धीनां योगमिन्वति । । -ऋग्वेद, १८७ २. सामवेद, ३०१।२१०१३; अथर्ववेद, २०१६९।१, ऋग्वेद, १।५।३ ३, योमे योगे तवस्तरं वाजे वाजे हवामहे । सखाय इन्द्रमूतये । -ऋग्वेद, ११३०१७ ४. अपश्यं गोपामनिपद्यमानमा च परा च पथिभिश्चरन्तम् । स सध्रीचीः स विषूचीर्वसान आवरीवति भुवनेष्वन्तः ॥ -वही, १११६४।३१, १०११७७३ ५. अदिते मित्र वरुणोत मृळ यद् वो वयं चकमा कच्चिदागः । उर्वश्यामभयं ज्योतिरिन्द्र मा नौ दीर्घा अभि नशन्तमिस्राः ॥ —वही, २।२७।१४ ६. वही, १।१४३।२ ७. ऐतरेयोपनिषद्, २।२।११ ८ कदा योगो वाजिनो रासभस्य । -ऋग्वेद, ११३४।९ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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