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________________ भारतीय परम्परा में योग वैदिक मन्त्रों और ब्राह्मण-ग्रन्थों में तप की शक्ति एवं महिमा के सूचक 'तपस्' शब्द का निर्देश प्राप्त होता है । अतः यह भी सम्भव है कि 'तप' शब्द योग का ही पर्यायवाची रहा हो। यों उपनिषदों में 'योग' शब्द आध्यात्मिक अर्थ में मिलता है। इसका उपयोग 'ध्यान' तथा 'समाधि' के अर्थ में भी हुआ है। उपनिषदों में योग एवं योग-साधना का विस्तृत वर्णन है, जिसमें जगत्, जीव और परमात्मासम्बन्धी बिखरे हुए विचारों में योग-विषयक चर्चाएँ अनुस्यूत हैं।' मैत्रेयी एवं श्वेताश्वतर आदि उपनिषदों में तो स्पष्ट और विकसित रूप में योग की भूमिका प्रस्तुत हुई है। यहां तक कि योग, योगोचित स्थान, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, कुण्डलिनी, विविध मन्त्र, जप आदि का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। १. त्वं तपः परितप्याजयः स्वः ।-ऋग्वेद, १०।१६७४१ ___२. (क) एत द्वै परमं तपो । अद्वयाहितः तप्यते परमं ह्य व लोकं जयति । -शतपथब्राह्मण, १४।८।११ (ख) अथर्ववेद, ४।३५।१-२ ३. (क) अध्यात्मयोगाधिगमेन देवं मत्वा धीरौ हर्षशोको जहाति । -कठोपनिषद, १।२।१२ तां योगमिति मन्यन्ते स्थिरामिन्द्रियधारणाम् । अप्रमत्तस्तदा भवति योगो हि प्रभवाप्ययो॥-वही, २।३।११ (ख) तैत्तिरीयोपनिषद्, २।४ ४. जिनमें केवल योग का ही वर्णन हुआ है, ऐसे उपनिषदों की संख्या (१) योगराजोपनिषद्, (२) अद्वयतारकोपनिषद्, (३) अमृतनादोपनिषद्, (४) अमृतबिन्दूपनिषद्, (५) मुक्तिकोपनिषद्, (६) तेजोबिन्दूपनिषद्, (७) त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद्, (८) दर्शनोपनिषद्, (९) ध्यानबिन्दूपनिषद्, (१०) नादबिन्दूपनिषद्, (११) पाशुपतब्राह्मणोपनिषद्, (१२) मण्डलब्राह्मणोपनिषद्, (१३) महावाक्योपनिषद्, (१४) योगकुण्डल्योपनिषद्, (१५) योगचूडामण्युपनिषद्, (१६) योगतत्त्वोपनिषद्, (१७) योगशिखोपनिषद्, (१८) वाराहोपनिषद्, (१९) शाण्डिल्योपनिषद्, (२०) ब्रह्म. विद्योपनिषद्, (२१) हंसोपनिषद् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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