________________
छठा अध्याय : अध्यात्म-विकास
१९०-२१७ वैदिक योग परम्परा में अध्यात्म विकास-१९०; योगदर्शन में पाँच भूमिकाएँ-१९१, योगवासिष्ठ में अज्ञान की सात एवं ज्ञान की सात भूमिकाएँ-१९१, बौद्ध योग में अध्यात्म विकास-१९४, जैनयोग में अध्यात्म विकास-१९७, कर्म-१९८, आत्मा तथा कर्म का संबंध, लेश्याएँ, गणस्थानों का वर्गीकरण-२०१, आठ दृष्टियाँ-२०४, मित्रा दृष्टि-२०५, तारा दृष्टि-२०६, बला दृष्टि-२०७, दीप्रा दृष्टि-२०८, स्थिरा दृष्टि-२१०, कान्ता दृष्टि-२११, प्रभा दृष्टि-२१२, परा दृष्टि-२१३, अध्यात्म विकास की अन्य पाँच सीढ़ियाँ-२१५,
अध्यात्म, भावना-ध्यान-समता एवं वृत्तिसंक्षय-२१६ । .सातवां अध्याय: योग का लक्ष्य-लब्धियां एवं मोक्ष २१८-२३३
वैदिक योग में लब्धियाँ-२१९, बौद्ध योग में लब्धियाँ-२२०, जैन योग में लब्धियाँ-२२०, लब्धियों के प्रकार-२२१, वैदिक योग में कैवल्य अथवा मोक्ष-२२५, बौद्ध योग में , निर्वाण-२२६, जैन योग में मोक्ष-२२८, सिद्ध जीवों के
प्रकार-२३२। उपसंहार
२३४-२४२ सहायक ग्रंथ-सूची
२४३-२५६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org