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अनुक्रमणिका
पृष्ठ संख्या प्रास्ताविक
क-च पहला अध्याय : भारतीय परम्परा में योग
१-३६ . . योग शब्द एवं उसका अर्थ-२, योग का स्रोत एवं विकास-४, वेदकालीन योग परम्परा-८, उपनिषदों में योग-१०, महाभारत में योग-१३, गीता में योग-१५, स्मति ग्रंथों में योग-१८, भागवत पुराण में योग-१९, योगवासिष्ठ एवं योग-२२, हठयोग-२३, नाथयोग-२५, शैवागम एवं योग-२७, पातंजल योगदर्शन-२९, अद्वैतवेदान्त एवं
योग-३१, बौद्ध योग-३३ ) दूसरा अध्याय : जैन योग-साहित्य
३७-५३ ध्यानशतक-३८, मोक्षपाहुड-३८, समाधितंत्र-३९, तत्वार्थसूत्र-३९, इष्टोपदेश-३९, समाधिशतक-४०, परमात्म प्रकाश-४०, योगसार-१४, हरिभद्र कृत योगग्रंथ-४१, योग शतक-४१, ब्रह्मसिद्धान्त सार-४२, योगविशिंका-४२, योगदृष्टिसमुच्चय-४२, योग बिन्दु९-४३, षोडशक-४४, आत्मानुशासन-४४, योगसार प्राभृत-४५, ज्ञानसार-४५, ध्यानशास्त्र अथवा तत्त्वानुशासन-४५, पाहुडदोहा-४६, ज्ञानार्णव अथवा योगार्णव अथवा योगप्रदीप-४६, योगशास्त्र अथवा अध्यात्मोपनिषद्-४७, अध्यात्मरहस्य अथवा योगोद्दीपन-४८, योगसार-४८, योगप्रदीप-४८, यशोविजयकृत योगपरक ग्रंथ-४९, अध्यात्मसार-४९, अध्यात्मोपनिषद्-४९, योगावतार बतीसी-४९, पातंजल योगसूत्र वृत्ति एवं योगविशिका की टीका-४९, योगदृष्टिनी संझायमाला-५०, ध्यानदीपिका-५०, ध्यान विचार-५०, वैराग्यशतक-५०, अध्यात्मकमल मार्तण्ड-५०, अध्यात्मतत्त्वालोक-५१, साम्यशतक-५१, योगप्रदीप-५१, अध्यात्म कल्पद्रुम-५२, जैन योग ( अंग्रेजी )-५२, तथा जैन योग के कुछ अन्य योग ग्रंथ-५३।
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