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________________ (घ ) है जिनके सम्यक् निर्देशन, स्नेह तथा प्रेरणा से यह शोध प्रबन्ध यथासमय पूरा हो सका । गुरुवर डॉ० आर० एस० मिश्र ( कार्यकारी अध्यक्ष, भारतीय दर्शन एवं धर्म-विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ) के प्रति लेखक नम्रीभूत है, जिनसे वह समय-समय पर शोधसम्बन्धी विचारों से उपकृत होता रहा है । डॉ० ए० एन० उपाध्ये ( डीन, फैकल्टी ऑफ आर्टस्, शिवाजी युनिवर्सिटी, कोल्हापुर ) डॉ० टी० जी० कलघटगी. (प्रिन्सिपल, कर्नाटक कॉलेज, मारवाड़) और डॉ० जी० सी० चौधरी ( प्रो० नवनालन्दा पाली शोधसंस्थान, बिहार ) वस्तुतः लेखक के प्रेरणास्रोत ही रहे हैं, इसलिए लेखक उनका हृदय से कृतज्ञ है । लेखक उपाध्याय श्री अमरमुनिजी महाराज और मुनि श्री विद्यानन्दजी महाराज आदि का भी अत्यन्त ऋणी है, क्योंकि उन्होंने सदा स्नेह तथा ज्ञान द्वारा उसे प्रोत्साहित किया है । इनके अतिरिक्त लेखक डॉ० वा० के० लेले ( रीडर, मराठी विभाग, का० हि० वि० वि० ), डॉ० एल० एन० शर्मा, ( अध्यापक, दर्शन विभाग, का० हि० वि० वि०), श्री एन० एच० हिरेमठ स्वामी, ( तन्त्रयोग विभाग, वा० स० विश्वविद्यालय ) डॉ० ए० एस० डी० शर्मा, ( सीनियर फेलो, भारतीय दर्शन एवं धर्म विभाग, का० हि० वि० वि०), डॉ० बी० एन० सिन्हा, श्री हरिहर सिंह, श्री कपिलदेव गिरि तथा केसरीनन्दनजी को भी नहीं भूल सकता, जिनका स्नेह और सद्भाव पाकर उसने सतत् गतिशील बने रहने का प्रयास किया है। पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी का तो लेखक अत्यन्त आभारी है ही, जहाँ से उसे दो वर्ष तक शोधवृत्ति प्राप्त हुई है तथा अन्य अनेक सुविधाएं मिली हैं। एल० डी० इन्स्टिट्यूट, अहमदाबाद तथा स्याद्वाद महाविद्यालय, वाराणसी के प्रति भी लेखक आभारी है जिनकी पुस्तकों का उपयोग किया गया है। अन्त में, लेखक यह स्पष्ट कर देना चाहता है कि उसने अहिंदी भाषी होते हुए भी राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति अनुराग के कारण ही प्रस्तुत शोधप्रबन्ध हिन्दी में लिखने का उपक्रम किया है । इसलिए भाषाविषयक त्रुटियों का होना स्वाभाविक ही है इसके लिए सुधी पाठकगण उसे स्नेहपूर्वक क्षमा करेंगे ऐसी अपेक्षा है | अध्यक्ष दर्शन शास्त्रविभाग, कराड कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय सतारा ( महाराष्ट्र ) Jain Education International For Private & Personal Use Only अर्हद्दास बंडोबा दिगे www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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