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जैन योग का आलोचनात्मक अध्ययन
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है, वहां तिलोयपणती में ६४, आवश्यक नियुक्ति में २८, षटखण्डागम में ४४, विद्यानुशासन में ४८, मंत्रराजरहस्य" में ५० एवं प्रवचनसारोद्धार में २८ लब्धियों का वर्णन है । प्रवचन सारोद्वार प्ररूपित २८ लब्धियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
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(१) आमोस हि - ( आमर्ष औषधि ) इस लब्धि के प्रभाव से साधक के शरीर स्पर्श मात्र से रोगी स्वस्थ हो जाता है ।
(२) विप्पोस हि -- ( वियुषौषधि ) इस लब्धि के प्रभाव से योगी का मलमूत्र औषधि का काम करता है ।
(३) खेलोषधि-- इस लब्धि के प्रभाव से योगी की श्लेष्मा से सुगंध आती है और उससे रोग - निवृत्ति होती है ।
(४) जलोषधि-- इस लब्धि के प्रभाव से योगी के
आदि के मैल से रोग शान्त होते हैं ।
(५) सर्वोषधि - इसके द्वारा मलमूत्रादि, नख, केश आदि में सुगन्ध आती है और उनसे रोग दूर होते हैं ।
(६) संभिन्नस्त्रोती - इस लब्धि के प्रभाव से योगी शरीर के प्रत्येक अङ्ग द्वारा सुनने में समर्थ होता हैं और सभी इन्द्रियाँ एक दूसरे का कार्य करने लगती हैं ।
(७) अवधिलब्धि - यह अवधिज्ञानी मुनि को प्राप्त होती हैं और वह भूत-भविष्य का कथन कर सकता है ।
(८) ऋजुमति - यह लब्धि मनःपर्यायज्ञानी योगी को प्राप्त होती है जिसके द्वारा वह संज्ञी जीवों के मनोगत भावों को सामान्य रूप से जानने में समर्थ होता है ।
कान, मुख, नाक
दसविधा लद्धी पणता, तंजहा-नाण लद्धी, दंसणलद्धी, चरितलद्धी, चरिताचरितलद्धी, दागलद्धी, लाभलद्धी, भोगलद्धी उवभोगलद्धी, वीरियलद्धी, इंदियलद्धी । - भगवतीसूत्र, ८२
२. तिलोयपणती, भाग १।४।१०६७-९१
३. आवश्यनिर्युक्त ६९-७०
४. षट्खण्डागम, खण्ड ४, १1९
५. श्रमण, वर्ष १६६५, अंक १-२, पृ० ७३ ६. प्रवचनसारोद्वार, २७०, १४९२ - १५०८
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