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योग का लक्ष्य : लब्धियां एवं मोक्ष
२२१ है। अन्य जैन योग ग्रन्थों की अपेक्षा ज्ञानार्णव' एवं योगशास्त्र में लब्धियों का विवेचन स्पष्ट एवं विस्तृत रूप में हुआ है। इन दोनों ग्रंथों में विस्तार पूर्वक विभिन्न प्रकार की लब्धियों और चमत्कारिक शक्तियों का वर्णन है जेसे जन्म-मरण का ज्ञान, शुभ-अशुभ शकुनों का ज्ञान, परकायाप्रवेश, कालज्ञान आदि । ध्यातव्य है कि इन लब्धियों की प्राप्ति जैनयोग साधना का बाह्य अंग है, आन्तरिक नहीं, क्योंकि योग-साधना का मूल उद्देश्य कर्म एवं कषायादि का क्षय करके सम्यक् दर्शन ज्ञान तथा सिद्धि रूप में मोक्ष प्राप्त करना है। जैनदर्शन के अनुसार लब्धि-प्राप्ति के लिए कुछ करने की आवश्यकता नहीं, वे तो प्रासंगिक फल के रूप में स्वतः निष्पन्न या प्रकट होती है। अतः साधक अथवा योगी इन लब्धियों से युक्त होकर भी कर्मो के क्षय का ही उपाय करते हैं तथा मोक्षपथिक बनते हैं। वे लब्धियों में अनासक्त रहकर आत्म साधना में लगे रहते हैं।
लब्धियों के प्रकार : __ जैन योग ग्रंथों में लब्धियों के प्रकारों के विषय में विभिन्न प्रति 'पादन हैं। भगवतीसूत्र में जहां दस प्रकार की लब्धियों का उल्लेख
१. देखें ज्ञानार्णव, प्रकरण २६ २. योगशास्त्र, प्रकाश ५, ६ ३. जोगाणुभावओ चिय पायं न य सोहणस्स वि य लाभो।
लद्धीण वि सम्पत्ती इमस्स जं वन्निया समए । रयणाई लद्धीओ अणिमाईयाओ तह चित्ताओ। मामोसहाइयाओ तहा तहा जोगवुड्ढीए । एईय एस जुत्तो सम्म असुहस्स खवगमो नेओ। इयरस्स बन्धगो तह सुहेणमिय मोक्खगामिति ॥ -योगशतक, ८३-८५ वक्रियध्व्योदयो ज्ञानतपश्चरणसंपदः। शुभाशुभोदयध्वंस फलमस्या रसस्मृतः । कथाद्वात्रिंशिका, १४
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