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योग का लक्ष्य : लब्धियां एवं मोक्ष
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(९) विपुलमति -- यह लब्धि मनःपर्यायज्ञानी योगी को ही प्राप्त होती है और इसके द्वारा भी संज्ञी जीवों के मनोगत भावों को सहजतया जाना जाता है ।
(१०) चारणलब्धि - इस लब्धि को आकाशगामिनी भी कहते हैं। इस लब्धि से आकाश में आने-जाने की विशिष्ट शक्ति प्राप्त होती है । इसके दो भेद हैं- जंघाचारण एवं विद्याचारण ।
(११) आशीविशलब्धि - - इससे शाप देने की शक्ति प्राप्त होती है | (१२) केवललब्धि - चार घातियकर्मो अर्थात् ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय तथा अन्तराय कर्मों के क्षय होने से केवलज्ञानरूपी लब्धि प्राप्त होती है, जिससे तीनों लोकों को स्पष्ट देखा जाता है |
(१३) गणधरलब्धि - इस लब्धि से गणधरपद की प्राप्ति होती है जिससे साधक तीर्थंकरों के प्रधान शिष्य एवं गण के नायक बनते हैं । (१४) पूर्वधरलब्धि - इस लब्धि से अन्तर्मुहूर्त में चौदहपूर्वो का ज्ञान प्राप्त होता है ।
(१५) अहंतुल ब्धि - - इसके द्वारा अर्हत्पदकी प्राप्ति होती है । (१६) चक्रवर्तीलब्धि - इस लब्धि से चक्रवर्ती पद की प्राप्ति होती है । चौदह रत्नों के धारक तथा छः खण्ड पृथ्वी के स्वामी को चक्रवर्ती कहते हैं ।
(१७) बलदेवलब्धि - इस लब्धि से द्वारा बलदेवपद की प्राप्ति होती हैं।
(१८) वासुदेवलब्धि - - इस लब्धि के वासुदेवपद की प्राप्ति होती है । (१९) क्षोरमधुसविरास्त्रबलब्धि - इस लब्धि के द्वारा योगी के वचन में दूध, मधु, तथा घी की मधुरता, मिठास तथा स्निग्धता आती है । (२०) कोष्ठक बुद्धिलब्धि - इस लब्धि के द्वारा योगी गुरुमुख से एक ही बार स्मृत, श्रवित एवं पठित ज्ञान को अक्षरश: ग्रहण कर लेता है तथा चिरकाल तक भूल नहीं पाता है ।
(२१) पदानुसारिणी - इस लब्धि के प्राप्त होने पर योगी श्लोक का एक पद सुनकर ही उसके आगे या पीछे के पदों को जान लेता है । (२२) बीजबुद्धि लब्धि - सुने हुए ग्रन्थ का एक बीजाक्षर जानने से ही अश्रुत पद एवं अर्थो को जानलेना ही बीजबुद्धिलब्धि है ।
(२३) तेजोलेश्या - मुख से निकली हुई ज्वाला के प्रभाव से दूरस्थ, सूक्ष्म तथा स्थूल पदार्थो को भस्म करने की शक्ति तेजोलेश्या है ।
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