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योग के साधन : ध्यान
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चौदहवें अयोगी नामक गुणस्थान में होता है जिसमें केवली भगवान् उपान्त्य में ७२ कर्मप्रकृतियों तथा इसी गुणस्थान के अन्त समय की अवशिष्ट १३ कर्मप्रकृतियों को भी नष्ट कर देते हैं। इस प्रकार शेष अघातिया कर्मों का नाश करके केवलीभगवान् इस संसार से पूर्णतः सम्बन्ध तोड़ लेते हैं और सीधे ऊर्ध्वगमन करके लोक के शिखर पर विराजमान होते हैं, क्योंकि उसके आगे लोकाकाश नहीं है और न धर्मास्तिकाय ही है, अतः उसके आगे गति नहीं है । वह सिद्ध परमात्मा लोक के शिखर पर अवस्थित होकर स्वाभाविक अनन्तगुणों के वैभव से परिपूर्ण अनन्तकाल तक रहता है।'
(ख) तुरीयंतु समुच्छिन्न-क्रियमप्रतिपाति तत् ।
शैलवन्निष्प्रकम्पस्य, शैलेस्यां विश्ववेदिनः ।।-अध्यात्मसार, ५७९, १. द्वासप्ततिविलीयन्ते कर्मप्रकृतयस्तदा ।
अस्मिन् सूक्ष्मक्रिये ध्याने देवदेवस्य दुर्जयाः ॥ विलयं वीतरागस्य तत्रयान्ति त्रयोदश ।
कर्मप्रकृतयः सद्यः पर्यन्ते या व्यवस्थिताः॥-ज्ञानार्णव, ३९।४७ व ४९ २. ज्ञानार्णव, ३९-५५ ३. ज्ञानार्णव, ३९।५८
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