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________________ १८२ जैन योग का आलोचनात्मक अध्ययन निन्दा-स्तुति आदि में समताभाव धारण करनेवाले हों, परोपकारी हों और प्रशस्तबुद्धि हों। ___ शुक्लध्यान धर्मध्यानपूर्वक ही होता है। इसलिए धर्मध्यान को योगसाधना का प्रथम सोपान माना गया है, क्योंकि आत्मा के शुद्ध, ज्ञानस्वरूप को तभी जाना जा सकता है जब योगी कषायों, इन्द्रियादि वासनाओं तथा कर्मो का सर्वथा उपशमन धर्मध्यान द्वारा कर लेता है। अतः धर्मध्यान के अन्तर्गत योगी ध्यान के विभिन्न साधनों जैसे जप, मन्त्र, विद्याओं का सहारा लेकर, व्रतों के सम्यक् आचरण से स्थूल वस्तुओं को ध्यान में रखते हुए सूक्ष्म तत्व की ओर गति करता है । इस प्रकार धर्मध्यान से मन की स्थिरता, पवित्रता एवं निर्मलता प्राप्त होती है और आत्म-ज्ञान की उपलब्धि से योगी आत्मा में तदाकार हो जाता है, जहाँ शुक्लध्यान की स्थिति है । इस दृष्टि से धर्मध्यान आत्मप्राप्ति की भूमिका उपस्थित करता है। (इ) शुक्लध्यान __आत्मा की अत्यन्त विशुद्धावस्था को शुक्लध्यान कहा गया है। वस्तुतः इस ध्यान से मन की एकाग्रता के कारण आत्मा में परम विशुद्धता आती है और कषायों, रागभावों अथवा कर्मो का सर्वथा परिहार हो जाता है। समवायांग के अनुसार श्रुत के आधार से मन की आत्यन्तिक स्थिरता एवं योग का निरोध शुक्लध्यान है ।' स्थानांगसूत्र में शुक्लध्यान के प्रकार, लक्षण, आलम्बन तथा अनुप्रेक्षाओं का निरूपण है।' शुक्लध्यान कषायों के सर्वथा उपशांत होने पर होता है तथा चित्त, क्रिया और इन्द्रियों से रहित होकर ध्यान-धारणा के विकल्प से भी मुक्त होता है । यह ध्यान धर्मध्यान की भूमिका के बाद प्रारम्भ १. योगशास्त्र, ७२-७ . २. समवायांग, ४ । ३. स्थानांग, अध्ययन ४, सूत्र ६९-७२ (जैन विश्वभारती द्वारा प्रकाशित) ४. कषायमलविश्लेषात्प्रशमाद्वा प्रसूयते ।। यतः पुंसामतस्तज्जैः शुक्लमुवतं निरुक्तिकम् ॥ -ज्ञानार्णव, ३९।५ निष्क्रिय करणातीतं ध्यानधारणवर्जितम् । अन्तर्मुखं च यच्चित्तं तच्छुक्लमिति पठ्यते ॥ - -ज्ञानार्णव में उद्धृत, ३९।४ (१)) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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