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योग के साधन : ध्यान होता है और वह रागद्वेष के कारण संसार-भ्रमण करता है। ऐसे कुटिल चिन्तन के कारण वह तिर्यंचगति प्राप्त करता है। और ऐसे स्वभाव के कारण उसकी लेश्याएँ कृष्ण, नील एवं कापोत होती हैं। ऐसे ध्यानी का मन आत्मा से हटकर सांसारिक वस्तुओं पर केंद्रित रहता है और इच्छित या प्रिय वस्तुओं के प्रति अतिशय मोह के कारण, उनके वियोग में या प्राप्त न होने पर दुःखित होता है । इसलिए इस ध्यान को अशुभ कहा गया है और इसकी स्थिति छठे गुणस्थान तक होती है। (भा) रौद्रध्यान - यह ध्यान भी अशुभ अथवा अप्रशस्त ध्यान है, जिसमें कुटिल भावों की चिन्तना होती है। जीव स्वभाववश सभी प्रकार के पापाचार करने में उद्यत होता है तथा वह निर्दयी एवं क्रूर कार्यो का कर्ता बनता है। इसलिए रुद्र अथवा कठोर जीव के भाव को रौद्र माना गया है। इस ध्यान में हिंसा, झूठ, चोरी, धनरक्षा में लीन होना, छेदन-भेदन' आदि प्रवृत्तियों में राग आदि आते हैं। इसके चार भेद प्ररूपित हैं।
(१) हिसानन्द-अन्य प्राणियों को अपने से या अन्य के द्वारा मारने, काटने, छेदने अथवा वध-बंधन द्वारा पीड़ित करने पर जो हर्ष प्रकट
१. रागो दोसो मोहो य जेण संसारहेयवो भणिया।
अट्रमि य ते तिण्णिवि तो तं संसार तरुबीयं । --ध्यानशतक, १३ २. कावोय-नील-कालालेस्साओ णाइसंकिलिट्ठाओ।
अट्टज्झाणोवगयस्स कम्मपरिणामजणिआओ॥ -वही, १४ ३. अपथ्यमपि पर्यन्ते रम्यमप्यग्रिभक्षणे।
विद्ध्यसद्ध्यानमेतद्धि षड्गुणस्थानभूमिकम् ।। -ज्ञानार्णव, २३॥३६ ४. रुद्रः क्रू राशयः प्राणी रोद्रकर्मास्य कीर्तितम् । .
रूद्रस्य खलु भावो वा रौद्रमित्यभिधीयते ॥ -वही, २४१२ ५. स्थानांग, ४१२४७; समवायांग, ४ ६. दशवैकालिकसूत्रटीका, अध्ययन १ ७. हिंसाऽनुतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रम् ... ... ।
-तत्त्वार्थसत्र, ९।३६; तथा ज्ञानार्णव, २४॥३
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