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योग के साधन : ध्यान
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हैं - ( १ ) पिण्डस्थ, (२) पदस्थ, (३) रूपस्थ और रूपातीत | ध्येय के इन चार भेदों का उल्लेख ज्ञानार्णव में भी है । रामसेनाचाय ने भी ध्येय के चार भेद गिनाये हैं- नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । फिर भी इनके वर्गीकरण की अपनी विशेषता है इनके अनुसार द्रव्य ध्येय ही पिण्डस्थ ध्यान रूप में उपस्थित हुआ है, क्योंकि ध्येय पदार्थ ध्याता के शरीर में स्थित आत्मा ही ध्यान-विषय माना गया है और पिण्डस्थ ध्यान का काम भी वही है । इन सबके अतिरिक्त ध्यान के चौबीस " भेदों का भी उल्लेख मिलता है, जिनमें बारह ध्यान क्रमशः ध्यान, शून्य, कला, ज्योति, बिन्दु, नाद, तारा, लय, मात्रा, पद और सिद्धि है तथा इन ध्यानों के साथ 'परम' पद लगाने से ध्यान के और अन्य भेद बनते हैं ।
उक्त भेद-प्रभेदों से अलग हटकर आगमों तथा योगग्रंथों में विवेचित ध्यान के सर्वसम्मत चार प्रकारों का विश्लेषण करना यहाँ अभीष्ट है । (अ) आर्त- ध्यान
दुःख के निमित से या दुःख में होनेवाला ' अथवा मनोज्ञ वस्तु के वियोग एवं अमनोज्ञ वस्तु के संयोग आदि के कारण अथवा आवश्यक मोह के कारण सांसारिक वस्तुओं में रागभाव करना " आर्तध्यान है अर्थात् राग-भाव से जो उन्मत्तता होती है, वह अज्ञान के कारण होती
१. पिण्डस्थं च पदस्थं च रूपस्थं रूपवर्जितम् ।
चतुर्धा ध्येयमाम्नातं ध्यानस्यालम्बनं बुधैः ॥ २. ज्ञानार्णव, ३६ १
३. नाम च स्थापनं द्रव्यं भावश्चेति चतुर्विधम् । - तत्त्वानुशासन, ९९ ४. धातु पिण्डे स्थितश्चैवं ध्येयोऽर्थो ध्यायते यतः ।
वही, १३४
ये पिण्डस्थमित्याहुरतएव च केवलं । सुन्न - कुल-जोइ - बिंदु-नादो -तारो-लओ-लवो मत्ता । पय-सिद्धि परमजुया झाणाई हुंति चउवीसं ॥
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६. स्थानांग, ४।२४७
७. समवायांग, ४ .८. दशवैकालिक अध्ययन १
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- योगशास्त्र, ७८,
- नमस्कार स्वाध्याय ( प्राकृत), पृ० २२५
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