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________________ १५८ जैन योग का आलोचनात्मक अध्ययन -न्त्यायतन, (२) विज्ञानानन्त्यायतन, (३) अकिंचनायतन एवं ( ४ ) नैवसंज्ञानासंज्ञायतन । साधक जब इन आयतनों को पार करता हुआ अन्तिम अवस्था के पार पहुँचता है, तब उसे निर्वाण की प्राप्ति होती है । इस अन्तिम अवस्था को 'भवाग्र' कहा गया है ।" महायान के अनुसार बुद्धत्व की प्राप्ति करना चरम उद्देश्य है और कहा गया है कि जब तक प्रज्ञापारमिताओं का उदय नहीं होता, तब तक बुद्धत्व की प्राप्ति नहीं होती । प्रज्ञापारमिताओं के उदय के लिए समाधि आवश्यक है " तथा समाधि के चार प्रकार भी वर्णित हैं, जो योगी को क्रमशः स्थूल से सूक्ष्म की ओर ले जाते हैं । समाधि के चार प्रकार ये हैं १. वितर्कविचार प्रीतिसुख एकाग्रसहित - यह विषयभोगों और अकुशल प्रवृत्तियों से अलग होकर वित्तकें एवं विचार से उत्पन्न प्रीति और सुख संवाहक ध्यान है । इसमें चित्त हमेशा चंचल रहता है । २. प्रीतिसुख एकाग्रसहित - इस ध्यान में वित्तर्क-विचार न रहने के कारण चित्त शांत रहता है और प्रीति, सुख, एकाग्र इन तीन अंगों के शेष होने के कारण यह ध्यान आन्तरिक चित्त की एकाग्रता सहित प्रीति सुखवाला होता है । ३. सुख एकाग्रसहित - इस ध्यान में प्रीति और विराग के प्रति उपेक्षाभाव रखकर योगी स्मृति और सम्प्रजन्य युक्त होकर सुख का अनुभव करता है, जिसे उपेक्षा, स्मृति, मान, सुखविहारी कहते हैं । ४. एकाग्रतासहित - इस ध्यान में सुखदुःख का प्रश्न ही नहीं उठता, सभी वृत्तियाँ शांत होती हैं, क्योंकि सोमनस्य ओर दौर्मनस्य के अस्त हो जाने पर सुख एवं दुःख भी विनष्ट हो जाते हैं और उपेक्षाभाव से केवल स्मृति ही परिशुद्ध होती है । इस प्रकार योगी चित्तशुद्ध स्वरूप को पाकर उसमें लीन हो जाता है अर्थात् समदर्शी अवस्था प्राप्त कर लेता है । अतः बोद्धयोग में भी अपनी अकुशल प्रवृत्तियों को हटाकर, 1. भवाग्रासंज्ञिसत्वाश्च सत्यावासानव स्मृताः । - वही, ३३६ २. बौद्धदर्शन, पृ० ३९७ ३. दीघनिकाय, १२; मज्झिमनिकाय, ३।२।१; विशुद्धिमार्ग, परि० ४ पृथ्वी कसिणनिर्देश | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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