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योग के साधन : आचार घेरण्डसंहिता' में कुम्भक प्राणायाम के आठ भेद उल्लिखित हैं; यथा-(१) सहित, (२) सूर्यभेदी, (३) उज्जायी, (४) शीतली, (५) भस्त्रिका, (६) भ्रामरी, (७) मूर्छा तथा (८) केवली। 'सिद्धसिद्धान्त पद्धति' के अनुसार प्राण की स्थिरता प्राणायाम है और इसके रेचक, पूरक, कुम्भक और संघट्टीकरण ये चार प्रकार हैं ।२ इनसे पाप एवं दुःख का नाश होता है, तेज एवं सौंदर्य बढ़ता है, दिव्यदृष्टि, श्रवणशक्ति, कामाचारशक्ति, वाशक्ति आदि शक्तियां प्राप्त होती हैं। इस प्रकार प्राणायाम से अनेक सिद्धियों की प्राप्ति होती है।।
बौद्ध-दर्शन में प्राणायाम को आनापानस्मृति कर्मस्थान कहा गया है। आन का अर्थ है सांस लेना और अपान का अर्थ है सांस छोड़ना । इन्हें आश्वास-प्रश्वास भी कहते हैं ।" कर्मस्थान ४० हैं और इन्हीं कर्मस्थानों की भावना कर सभी बुद्ध, प्रत्येकबुद्ध तथा बुद्ध श्रावकों ने विशेष फल प्राप्त किया था। ___ जैन-परम्परा में प्राणायाम के संबंध में दो मत मिलते हैं। एक मत के अनुसार, प्राण का निरोध करने से शरीर में व्याकुलता उत्पन्न होती है और मन भी विचलित हो जाता है, जिससे मन स्वस्थ तथा स्थिर नहीं रह पाता। पूरक, कुम्भक और रेचक (प्राणायाम ) करने में परिश्रम करना पड़ता है, जिससे मन में संक्लेश पैदा होता है। दूसरे मत के
१. सहितः सूर्यभेदश्व उज्जायी शीतली तथा। __ भस्त्रिका नामरी मूळ केवली चाष्ठ कुम्भकः ।। -घेरण्डसंहिता, ५।४६ २. सिद्धसिद्धान्तपद्धति, २०३५ ३. शिवसंहिता, ३।२९, ३०, ५४ ४. Tibetan Yoga and Secret Doctrines. pp. 187-89 ५. बौद्धधर्मदर्शन, पृ० ८१ ६. मज्झिमनिकाय, २।२।२; ३१२१८ ७. विसुद्धिमग्गो, पृ० २६९ ८. तन्नाप्नोति मनःस्वास्थ्यं प्राणायामः कथितम् ।
प्राणस्यायमने पीडा तस्यां स्याच्चित्त-विप्लवः ।। पूरणे कुम्भने चैव रेचने च परिश्रमः । चित्त-संक्लेश-करणान्मुक्तेः प्रत्यूह-कारणम् ॥-योगशास्त्र, ६।४-५
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