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योग के साधन : आचार
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है कि आसन के द्वारा मन स्थिर होता है ।' भागवतपुराण में भी स्थानस्थान पर आसन का वर्णन है ।२ पातंजल-योग के अनुसार सुखपूर्वक अधिकतम समय तक स्थिर होकर बैठना ही ध्यान है। यह भी कहा गया है कि जो आसन स्थिर तथा सुखद हो, वही करना चाहिए। ऐसे आसनों में पद्मासन, वीरासन, भद्रासन, स्वस्तिकासन, दण्डासन, सोपाश्रय, पर्यंकासन आदि आसनों का वर्णन है। हठयोग के अनुसार आसनों का मुख्य कार्य शरीर को स्वस्थ बनाना, आलस्य दूर करना, तथा शरीर के भारीपन को दूर करना भी है। आसन के साथ ही साथ हठयोग में विभिन्न मुद्राओं का भी निरूपण हुआ है, जो आसन के अंगीभूत साधन हैं।
बौद्धयोग-साधना में भी आसनों का महत्त्व है तथा पर्यंकासन को सबसे उत्तम माना गया है। इस आसन के विषय में बताया गया है कि बायीं जांघ पर दाहिना पैर रखना चाहिए तथा दाहिनी जांघ पर बायाँ पैर रखना चाहिए। ऐसा ही लक्षण पद्मासन का है। इसमें बुद्धासन, सिद्धासन, वज्रासन का भी वर्णन है । ६
जैन-परम्परा में यद्यपि चित्त की स्थिरता के लिए अमुक आसन का ही प्रयोग करना चाहिए-ऐसा कोई नियम नहीं है, परन्तु जिस आसन द्वारा मन स्थिर होता है उसी आसन का उपयोग ध्यान-साधना के लिए उपयुक्त माना गया है। इस तरह जिन-जिन आसनों के द्वारा दीर्घकाल
१. स्थिरमासनमात्मनः । -भगवद्गीता, ६।११, ६।१२; १११४२ २. श्रीमद्भागवतपुराण, २।१।१६; ३।२८1८; ४।८।४४ ३. स्थिर सुखमासनम् । -योगदर्शन, २०४६ ४. योगदर्शन व्यासभाष्य, पृ० ४८० ५. घेरण्डसंहिता, २।३-६ ६. (क) Tibetan Yoga and Secret Doctrines, p. 184-85
(ख) बौद्धदर्शन, पृ० २३ ७. जायते येन येनेह विहितेन स्थिरं मनः ।
तत्तदेव विधातव्यमासनं ध्यान साधनम् ॥ -योगशास्त्र, ४।१३४
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